संदेश
क्रोध में अंधा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
दोपहर भट्टी सी जलती सूरज हुआ- क्रोध में अंधा। लू का कोषालय है जेठ बना होगा। न शहरी, न देहाती ठेठ बना होगा।। प्यासे को पानी बेचती मंद ह…
सब दिन होत न एक समान - नवगीत - रमाकांत सोनी
आज आदमी व्यथित हो रहा, चिंतातुर नर दिखता श्रीमान। आया समय विकट महामारी, सब दिन होत न एक समान।। संकट में धीरज धर मानव, रखना सब अपनों का…
मासूमों से हारे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
चाँद तारे अंबर को लगते बहुत प्यारे। ख़्वाब ज्यों इत्र के सरोवर में नहाए। पहाड़ पर चरवाहा बाँसुरी बजाए।। सुगंध से विवाह रचे फूल हैं कुँआ…
माता - नवगीत - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
आई माता द्वार पर, गूँज रही जयकार। हर्षित मन इतरा रहा सपने हैं साकार। मन में दीपक नेह का, जला आरती आज। करना माँ सब पर कृपा, पूरी करना…
भटक रहे पाँव - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
सतरंगी इन्द्रधनुष बुन रहा आकाश। है मन ऐसे खिला-खिला जैसे पलाश।। बल्लियों सा उछलता है ये दिल। तय करना दूरी होता मुश्किल।। मीलों भटक रहे…
बधाई दे रहे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
नये साल की सबको हम बधाई दे रहे। उजले-उजले दिन हों महकी-महकी रातें। और किसी रिंद की हों बहकी-बहकी बातें।। फूल अपने चेहरे की लुनाई दे रह…
ई मेल - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
सुख-दुख हो गए मानो धूप-छाँव का खेल। दिन मुसाफ़िर से आते और जाते हैं। किसी परिचित से हम खड़े बतियाते हैं।। स्टेशन हम पहुँचे थे तभी छूट ग…
और ये साल गया - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
घिसट-घिसट दिसंबर आया और ये साल गया। अगर मौसम बदला पड़ने लगे तुषार। और फसल-खेत को चढ़ने लगे बुखार।। कोरोना के कारण उत्सव और धमाल गया। ठ…
समकालीन कथा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
इस धरती के ऊपर आसमान की छानी है। पेड़-पौधे अपने में तल्लीन दिखते हैं। अब तो बरगद समकालीन- कथा लिखते हैं।। रसाल दिखते जैसे कि बड़े औघड़…
दिवा स्वप्न दिखलाने वाले - नवगीत - डॉ. अवधेश कुमार "अवध"
सूरज को झुठलाने वाले जुगनू बन इठलाने वाले सुन, नन्हें तारों की महफ़िल से यह दुनिया बहुत बड़ी है सूरज-ऊष्मा से अभिसिंचित अनुप्राणित …