माता - नवगीत - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"

आई माता द्वार पर, 
गूँज रही जयकार। 
हर्षित मन इतरा रहा
सपने हैं साकार।
मन में दीपक नेह का,
जला आरती आज।
करना माँ सब पर कृपा,
पूरी करना काज।
छाई विपदा जगत पर,
माता कर दो दूर। 
तेरी शक्ति के सामने,
मद हो इसका चूर।
जयकारा है लग रहा,
सजा हुआ दरबार। 
बीमारी यह दूर हो,
करदो माँ उपकार।
नैनन जल पग धो रही,
सिर पर रख दो हाथ।
बाल न बाँका हो कभी,
जो पाए माँ साथ।

डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा" - दिल्ली

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