ई मेल - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

सुख-दुख हो गए मानो
धूप-छाँव का खेल।

दिन मुसाफ़िर से
आते और जाते हैं।
किसी परिचित से
हम खड़े बतियाते हैं।।

स्टेशन हम पहुँचे थे
तभी छूट गई रेल।

आँखों के सपने 
हैं महँगाई भत्ता। 
बदमाश ने तोड़ा 
मुमाखी का छत्ता।।

मन को न मिल जाए कहीं
कष्ट का ई मेल। 

खून-खराबा ज्यों कि
चीता करे शिकार।
शहर न पसीजा सुन
दुख की चीख-पुकार।

अपराध खुला घूमता
निरपराध को जेल।

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos