रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)
सब दिन होत न एक समान - नवगीत - रमाकांत सोनी
शुक्रवार, मई 21, 2021
आज आदमी व्यथित हो रहा,
चिंतातुर नर दिखता श्रीमान।
आया समय विकट महामारी,
सब दिन होत न एक समान।।
संकट में धीरज धर मानव,
रखना सब अपनों का ध्यान।
वक़्त वक़्त की बात है भाई,
सब दिन होत न एक समान।।
प्रगति पथ पर फिर आएगा,
विकास रथ होगा गतिमान।
धैर्य परीक्षा आज हमारी,
सब दिन होत न एक समान।।
सच्चाई की डगर कठिन है,
संभल संभल चलना इंसान।
जीत सत्य की संभव है,
सब दिन होत न एक समान।।
खूब दौड़ती पटरी पर गाड़ी,
अपनों पर लुटाता नर जान।
दूर-दूर सब अपने दूर हो रहे,
सब दिन होत न एक समान।।
प्रेम अगर बाँटोगे जग में,
परचम लहराए आसमान।
मनुज मनुज के काम आए,
सब दिन होत न एक समान।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर