सब दिन होत न एक समान - नवगीत - रमाकांत सोनी

आज आदमी व्यथित हो रहा,
चिंतातुर नर दिखता श्रीमान।
आया समय विकट महामारी,
सब दिन होत न एक समान।।

संकट में धीरज धर मानव,
रखना सब अपनों का ध्यान।
वक़्त वक़्त की बात है भाई,
सब दिन होत न एक समान।।

प्रगति पथ पर फिर आएगा,
विकास रथ होगा गतिमान।
धैर्य परीक्षा आज हमारी,
सब दिन होत न एक समान।।

सच्चाई की डगर कठिन है,
संभल संभल चलना इंसान।
जीत सत्य की संभव है,
सब दिन होत न एक समान।।

खूब दौड़ती पटरी पर गाड़ी,
अपनों पर लुटाता नर जान।
दूर-दूर सब अपने दूर हो रहे,
सब दिन होत न एक समान।।

प्रेम अगर बाँटोगे जग में,
परचम लहराए आसमान।
मनुज मनुज के काम आए,
सब दिन होत न एक समान।।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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