संदेश
अपराध बोध की व्यथा - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
पिटे जाने की ग्लानि अपराध-बोध की व्यथा; पुरे माहौल को पीड़ा से भर देती है सुख की मटमैली चादर पूरे वजूद को जकड़ लेता है ज़ंजीर की तरह जीने…
प्रतिशोध अपराध का जन्मदाता - लेख - शिव शिल्पी
आधुनिक समय में व्यक्तियों में निकटता बढ़ती जा रही है और यह निकटता मित्रता तथा प्रेम सम्बन्धों के रूप में दिखाई पड़ती है। जो कि सकारात्…
क्या दो ही थे हैवान? - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
यह कविता समाज के उन लोगों को समर्पित है जो समाज में सामने होते अत्याचार पर मात्र तमाशा देखते रहते हैं मदद की कोई कोशिश नहीं करते। बल्ल…
जाति की खातिर - कविता - नीरज सिंह कर्दम
जाति की खातिर बचा रहे हैं बलात्कारी को न्याय कैसे मिलेगा अपराधी बना रहे हैं पीड़िता को । दलित की बेटी, दलित की बेटी मीडिया रोज चिल्लात…
भ्रूण हत्या क्यों, कबतक? - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
कन्या भ्रूण हत्या क्यों कबतक, हत्या उसकी जो जना धरा, अस्तित्व मिटाने चला कृतघ्न, निज कोख उसी का मौत सबब, क्या सोच बदलेगी मनुज कलियुग, …
कैसी ये हैवानियत - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
दरिंदगी लज्जित हुई , देख मनुज बेशर्म। बेजु़बान थी गर्भ से , मरी मनुज दुष्कर्म।।१।। कैसी ये हैवानियत , कैसा …
हाथियों की हत्या की परंपरा आखिर कब तक जारी रहेगी? - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
केरला की दर्दनाक ,शर्मनाक घटना से आत्मा इस कदर आहत हुई कि निशब्द हूँ ,निस्तब्ध हूँ । मेरे जेहन में , हाथी मेरे साथी, फिल्म का एक …
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