हाथियों की हत्या की परंपरा आखिर कब तक जारी रहेगी? - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

केरला की दर्दनाक ,शर्मनाक घटना से आत्मा इस कदर आहत हुई कि निशब्द हूँ ,निस्तब्ध हूँ ।
मेरे जेहन में , हाथी मेरे साथी, फिल्म का एक गीत बार-बार घूम रहा है कि , जानवर कोई इंसान को मारे। कहते हैं दुनिया में पापी उसे सारे, इक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है चुप क्यूँ है संसार ?  नफरत की दुनिया को छोड़कर , प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार!
इंसानों और वाइल्डलाइफ के बीच बढ़ते संघर्ष की वजह  तो स्पष्ट है , जंगलों का कम होना।

हमारे देश को  सदियों से एक अहिंसक देश के रूप मे जाना जाता है। यहाँ पर सदा से ही पशु , वृक्ष  नदिया एवं धरती  चाँद ,सूर्य पंछी पौधे भी पूजे जाते रहे हैं ,ऐसे मे ऐसा  घिनौना अपराध बेहद शर्मनाक एवं मनावता को शर्मसार करता है। धन के लालच मे हाथी मारकर उसके दाँत निकाल कर तस्करी करना केरला  मे आये दी होता रहा है। अब इसके लिए सख्त कानून का पालन होना चाहिए नही तो हाथियों की प्रजाति ही नष्ट हो जायेगी।
ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे जमीन के इस्तेमाल को लेकर विशेष नीति नहीं है दो तरह के खतरे हैं पहला शिकार दूसरा इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल। हाथी दाँत की चोरी के लालच मे भी अतीत काल से हाथियों की हत्या होती आयी है। डाकू वीरप्पन तो हाथियों का क्रूरतम हत्यारा था।
मौजूदा कानून स्थिति से निपटने के लिए काफी है मगर समस्या यही है कि कानून से ठीक से लागू नहीं किया जा रहा , और एक समस्या यह है कि हम किस तरह जंगली जानवरों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। इंसानों के दबाव की वजह से उनके आशियाने उजड़ रहे हैं ।जलवायु परिवर्तन भी स्थानीय समुदायों और जानवरों पर काफी बुरा असर डाल रहा है।सभी को सामाजिक न्याय की जरूरत है  वो चाहे इंसान हों या जानवर। उन्हें सुविधाएं देकर जंगलों से दूर किया जा सकता है इंसानो को भी सुरक्षित रहने की जरूरत है और जानवरों को भी। इसे लैंडस्केप प्लानिंग कहते हैं ,जो कि हो नहीं रही ।
गर्भवती हथिनी की मौत पर इंसानों को शर्मसार होना चाहिए। केरला के बारे में सुना है अनानास या मीट में हल्के विस्फोटक पैक करके जानवर को खेतों में आने से रोकना केरल के स्थानीय इलाकों में काफी प्रचलित है। इसे मलयालम में  ,पन्नी पड़कम ,कहा जाता है जिसका मतलब होता है पिग क्रैकर ये जंगली सूअरों के लिए होता है, हाथियों के लिए नही।

केरला मे विस्फोट से भरा अन्नानास को हथिनी को दे दिया गया। बिचारी गर्भवती थी अपने गर्भस्थ के लिए कुछ खाने को खेतों में आई थी कि इंसानो द्वारा रखे विस्फोटक से भरा  अनन्नास खा लिया और  पेट मे पड़ी जलन से पानी पीने  नदी की तरफ चलती चली गई। रास्ते मे दिखे इंसानो को कोई चोट तक नही पहुचायी बिचारी ने। बस नदी मे ही खड़े-खड़े उसने दम तोड़ दी। यह कहां का न्याय है कौन सी इंसानियत है ? आखिरकार सरकार लैंडस्कैपिंग पर क्यों नहीं ध्यान दे रही ।
उससे भी बड़ी वजह तो यह है कि हम इंसान बढ़ते जा रहे हैं और पशुओं के घरों पर यानी जंगलों पर कब्जे कर रहे हैं और जब वह  भूख से व्याकुल होकर खेतों में आते हैं तो उनकी हत्या कर दी  जाती है।        
आखिर यह सब कब तक चलेगा, कब तक निर्दोष जानवरों की हत्या होती रहेगी ?
कब तक इंसान बेगुनाह पशुओं के खून से अपने हाथ रंगता रहेगा?

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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