कैसी ये हैवानियत - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

दरिंदगी   लज्जित   हुई , देख   मनुज  बेशर्म।
बेजु़बान   थी   गर्भ  से , मरी   मनुज  दुष्कर्म।।१।।

कैसी   ये   हैवानियत ,  कैसा   मानव   चित्त।
हथिनी  को  बारुद  खिला , दानवीय  आवृत्त।।२।।

युग  युग से मानव  सखा , धीर वीर  बलवान।
उस गज का दुश्मन यहाँ , बना  मनुज शैतान।।३।।

ऐरावत   देवेन्द्र  का , लक्ष्मी  प्रिय   गजराज।
जिसे  बचाये हरि स्वयं , दुश्मन  बना समाज।।४।।

शाकाहारी  गज  सदा , शान्ति मन्द गतिमान।
साथ   दिया सम्मान  बन ,जीवन भर इन्सान।।५।।

गर्भवती  हथिनी   मरी , लोभी   मनुज प्रपंच।
लाँघी   मर्यादा    सभी , दया   न  आयी  रंच।।६।।

प्रकृति  विरोधी  चिन्तना,बदतर नर पशुतुल्य।
शील कर्म नैतिक पतन,क्या जाने मानवमूल्य।।७।।

गजसेना    चतुरंगिनी ,  सेना    का   आधार। 
बलिदानी  रक्षण  वतन , कर  दुश्मन  संहार।।८।।

राजाओं की शान जो , कुदरत   का  वरदान। 
भीमकाय असहाय गज , ली  मानव ने जान।।९।।

क्रुर हुआ पशु जाति पर ,जाने  क्यों  इन्सान।
स्वार्थ सिद्धि मद मोह में , बना आज   हैवान।।१०।।

 मरी पड़ी हथिनी रही,तीन दिवस जल कुण्ड।
 मिले न्याय  गजगामिनी, अपराधी को  दण्ड।।११।।

लखि हत्या कवि कुंजरी , है निकुंज  वीरान।
सजा मिले खल कठिनतर,दानव नर शैतान।।१२।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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