लॉक डाउन मे मजदूरों का देशहित मे योगदान - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला


कोरोना वायरस की दुःखदायी स्थिति से देश मे लगे  लॉक डाउन मे मजदूरों का देश के लिए योगदान   अविस्मरणीय रहेगा।
भारत में मजदूर भयंकर परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक भारत में कम से कम 90 प्रतिशत लोग गैर संगठित क्षेत्रों में काम करते हैं ।
यह लोग सिक्योरिटी गार्ड ,सफाई करने, वाले रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी लगाकर सामान बेचने वाले ,कूड़ा उठाने वाले ,सड़क के किनारे पानी की बोतल बेचने वाले ,बूट पॉलिश करने वाले और घरों में नौकर नौकरानी के रूप में काम करने वाले अनेकों लोग हैं ,जिनकी जिंदगी उनकी नकद आमदनी  पर टिकी होती है ।
यह रोज कमाते हैं  रोज खाते हैं।रोज का रोज मेहनताना  जिसे यह पूरे दिन काम करके करने के बाद घर लेकर आते हैं ।
इनमें से कोई प्रवासी मजदूर है और कोई अपने ही राज्य का है । प्रवासी मजदूर का मतलब होता है कि यह किसी दूसरे राज्य के निवासी हैं ,और यह काम  करने के लिए दूसरे राज्य से आये हैं। इसके बाद समस्या आती है उन लोगों की जो लोग पूरे साल एक राज से दूसरे राज्य में काम की तलाश में आते जाते रहते हैं ।

भारत में ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो सड़क के किनारे ठेला लगाकर अपना व्यापार करते हैं पानी बेचते हैं ,स्टेशनों पर बूट पॉलिश करते हैं ,वह सभी असहाय की स्थिति में इस समय बिखरे हुए हैं एवं स्तब्ध  हैं।
उनका कथन है कोरोना वायरस से पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है जिन लोगों के ठौर ठिकाना ही , वह घर के अंदर  हैं । अब हमारे जैसे लोगों के पास दो ही विकल्प हैं, एक सुरक्षा और दूसरा  भूख। किसे चुनना है यह हम कैसे  तय करें ।
यहां पर यह कहना गलत ना होगा कि लॉक डाउन की स्थिति में कोरोना के दुष्प्रभाव से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले गरीब मजदूर ही हैं । गरीब मजदूर इस समय चाहे वह अपने गांव पहुंच गए हों या अभी भी प्रवासी की स्थिति में  ही परन्तु उनका  चुपचाप अपने अपने ठिकानों पर विवशता की चादर ओढ़कर लाक डाउन का पालन करना एक बड़ा योगदान माना जायेगा समाज के प्रति। क्योंकि उनके सामने रोजी-रोटी की भयंकर समस्या है हालांकि सरकार व निजी संस्थान भी इनको सहायता भी दे रहे हैं। भोजन राशन  आदि वितरित किया जा रहा है । मगर फिर भी पूरी तरह से सरकार की भी हर सहायता इन तक सीधे नहीं पहुंच पा रही  है । ऐसे में हाथ पर हाथ रखकर समाज का एवं स्वयं का बचाव करके ,अनिश्चितता की ओर टुकटुकी लगाकर अपने ठिकानों में खुद को कैद कर लिया हैं ,यही क्या कम है ।
उन ग़रीबो का इस समय देश के लिए यही बलिदान है ,यही योगदान है ।


सुषमा दिक्षित शुक्ला

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