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बहुत नादान फिरते इस शहर में - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन तक़ती : 1222 1222 122 बहुत नादान फिरते इस शहर में, यहाँ वो मौक़ा खोजे हर क़हर में। रहें घर पर, न कोई हादस…
कैसे करूँ दिल की बात - कविता - अंकुर सिंह
साथ छोड़ते देख लोगों को, कैसे करूँ अपने दिल की बात। समय कठिन है बचके रहना यारों, महामारी लगाए बैठी है घात।। चहुँओर फैली इसकी माया, मन …
आशा का दीप - कविता - ममता रानी सिन्हा
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएँ परिस्थिति विकट है और चहुँओर संकट है, पर समाधान भी तो हम ही निकलवाएँ, साथ और संबलता से फिर सफलता लाएँ, स्वंय …
कफ़न मैं बाँट रहा हूँ - कविता - आर एस आघात
दुख भरे माहौल में, अपना व्यापार चला रहा हूँ, सफ़ेद कपड़ा जिसे कहते हैं, कफ़न मैं बाँट रहा हूँ। इस साज़ो-समान से, जलता है चूल्हा मेरे घ…
पच्चीस से माथा-पच्ची - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
हमारे यहाँ शादी हो समारोह हो या फिर हो तेरहवीं की दावत, जलवे जब तक तलवे झाड़ के न हो तब तक स्वर्गवासी आत्मा को भी शांती नही मिलती है। अ…
हरियाली हो - कविता - नरेश चन्द्र उनियाल
जदपि करोना ने है रुलाया, एक सबक सुंदर सिखलाया। देखो रौनक जरा धरा की, धुल गई मूरत वसुंधरा की। गर प्रकृति की रखवाली हो, हरियाली हो। ख़ुशह…
कोरोना काल - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
इस कोरोना काल में, निडर हो हिम्मत रखियो, काऊ से मेल मिलाप न करियो। और पहनियो मास्क, घर से न निकलो रखो दूरी बना के नहीं तो होगा काम तमा…
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