हरियाली हो - कविता - नरेश चन्द्र उनियाल

जदपि करोना ने है रुलाया,
एक सबक सुंदर सिखलाया।
देखो रौनक जरा धरा की,
धुल गई मूरत वसुंधरा की।
गर प्रकृति की रखवाली हो,
हरियाली हो। ख़ुशहाली हो।।

वृक्षारोपण काज पुण्य का,
लो यह निर्णय आज पुण्य का।
वृक्ष लगा, फल-छाया वाला,
बनिए प्रकृति का रखवाला।
हर घर में एक एक डाली हो,
हरियाली हो। ख़ुशहाली हो।।

आओ एक शपथ करते हैं,
धूल, धुआँ कुछ कम करते हैं।
जल-परदूषण, मृदा-प्रदूषण,
ये कलजुग के हैं खर-दूषण।।
इनसे गर धरती खाली हो,
हरियाली हो। ख़ुशहाली हो।

प्रकृति की, पूजा कर मानव,
मत कर नष्ट, न बन तू दानव।
तेरी पालनहार है प्रकृति,
तेरा करती उद्धार है प्रकृति।।
फिर तू भी, इसका माली हो,
हरियाली हो। ख़ुशहाली हो।।

नरेश चन्द्र उनियाल - पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)

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