पच्चीस से माथा-पच्ची - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

हमारे यहाँ शादी हो समारोह हो या फिर हो तेरहवीं की दावत, जलवे जब तक तलवे झाड़ के न हो तब तक स्वर्गवासी आत्मा को भी शांती नही मिलती है। अब दावत और शमशान दोनो मे एक ही पेच है कि कुछ भी हो पच्चीस से ज़्यादा नही होने चाहिए नही तो कोरोना छब्बीसवाँ मेहमान बन जाएगा। अब इसी जिद्द-ओ-जहद में हमारे मुन्नू के ब्याह को ले लो, तारीख़ का एेलान होते ही डंका पिट गया है गाँव मे कुत्ते बिल्लियों को भी ख़बर हो गई है कि मुन्नू का ब्याह भी लॉकडॅाउन मे ही है। ख़ैर किसे बुलाएँ किसे न बुलाएँ तथाकथित कार्डो पर कमी का धब्बा और मुहँ छुआ न्योता से कैंची चला रहे हैं, अब मामा को न बुलाएँ तो मामी नाराज़, ताऊ न आए तो लड़की वालों पर रॉब कौन जमाएगा? और बुआ न आई तो दहेज और खाने का लेखा-जोखा कौन करेगा? अब रही बात लड़की वालों मे लोग नही आए तो तो अभूतपूर्व दी गई भेंटो का ब्याज कब मिलेगा? इन सब के चक्कर मे हमारे पड़ोसी बड़े ही कनफ्यूजियाए गए हैं कि, उनको दावत का मुहँ छुआ न्योता मिलेगा भी या नहीं। इस बार दुल्हे राजा की बारात किसी डकैतों की टोली से कम नही लग रही है एक बेगाने ने पूछ ही लिया की दुल्हन लेने जा रहे हो या पच्चीस की टोली बना डाका डालने जा रहे हो? हम तो हम बाकी सब पानी कम है उधारी चार पहिया से ही सही अम्बानी सा रॉब दिखाते हैं भले ही बैल बिक जाए तो क्या करना। शादी में कोरोना नो एंट्री का बोर्ड किसी फिल्मी विलेन जैसा धाँसू अन्दाज़ मे डरा रहा था "मास्क लगाएँ हाथ धोए और रखे दो गज दूरी नही तो बहुत जल्द हो जाएगी अपनो से दूरी" निरीक्षण मे तो दो गज दूरी मंडप के गद्दों के नीचे चप्पल-जूतों मे अवश्य दिख रही थी कोई देख न लें, चाचा, ताऊ और मामा तो ग्रुप मे फोटो लेकर फेसबुक पर एंजॉय मास्क फिलिंग विथ दाढ़ी पर चढ़े मास्क वाली फोटो अपडेट कर कोरोना मे पच्चीसवें की ही गिनती कर रहे थे। यहाँ तो हलवाई से लेकर बैरा तक की संख्या बीस के ऊपर थी एंट्री गेट पर तो पच्चीस के बाद छब्बीसवाँ आता ही नही है और जो आ भी गया तो वो मास्क ही गिनेगा इंसान नही। सात जन्मो के रिश्ते मे चश्मदीद गवाह बुलाए जा रहे थे जो अक्सर खाने और दहेज की जी भर कर ता'रीफ़ करते हैं कि सब्जी मे नमक कम था, रोटी किसी नौसिखिए ने बनाई थी, वाह क्या बेड का कलर है इससे अच्छा शर्मा जी ने बेड दिया था इन सब की कमी से शादी मे दिमाग़ का दही हो गया। बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना ही सही क्यों संख्या तो पच्चीस थी काग़ज़ पर और नियम थे ताक पर क्योंकि शादी एक बार ही होनी है और तेरहवीं की दावत भी होनी है, तय तुम्हें करना है पच्चीस से माथापच्ची करना है या छब्बीसवाँ मेहमान को इनवाईट करना है।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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