कोरोना काल - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

इस कोरोना काल में,
निडर हो हिम्मत रखियो,
काऊ से मेल मिलाप
न करियो।
और पहनियो मास्क,
घर से न निकलो
रखो दूरी बना के
नहीं तो होगा काम तमाम।
साधारण काम
सब भूल जाओ,
अगर अति हो आवश्यक काम,
घर से बाहर तभी निकलना
चाहे सुबह हो या होवे शाम।
हवा में दुश्मन
घूम रहा है
वगैर मास्क के
न करियो मॉर्निंग वॉक,
पांत पंगत और नैवते छोड़ो
घर को खाना खाय के गर्म पानी पी
ये विषाणु किस बहाने से 
आवे
कोउ ना जान पावे,
चाहे हो ख़ास खासम
न मिलाओ हाथ
होशियार रहना
नहीं तो हो जाओगे ख़ाक।
कोरोना ने
घर घर खटिया
बिछ्वा दई,
एसो है निर्दयी रोग
देखें सुबह न शाम।
रिश्ते, नाते और दोस्ती,
न तोड़ो पर दूरी बना के,
राखियो चारो याम।
कथा वार्ता और पूजन पाठ
कर दो कम, और छोड़ो
हाट बाज़ार।
जिनकी साँसे टूट रही है
उन्हें प्राण वायु
और दवा का,
दान कर
रोगी का सपना, करो साकार।
दानवीर रहा है देश हमारा,
ऋषि दधीचि को याद करो,
लोगो की ख़ातिर कर दो
सब कुछ निस्वार्थ पर हित करो,
और सजग रहो आठो याम।
बड़े बूढे सबको सिखा गए,
जो निर्बल हो या होवे ग़रीब
जिसकी डूब रही मझधार में नैया,
उन सबको पार लगा के
कर दो महान काम,
जो धन ख़र्च करो
तीर्थ में
उस धन को
कोरोना काल में
टूटी साँसों, की आस बचावे
वहीं सच्चा धर्म 
वहीं है सच्चा तीर्थ धाम।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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