संदेश
ड्यूटी की ब्यूटी - लघुकथा - प्रमोद कुमार
पिछले चुनाव का यात्रा वृतांत सुनकर ही मिश्रा जी ने इस बार संपन्न होनेवाले पंचायत चुनाव में पिताजी का नाम चुनाव ड्यूटी से हटवाने का फ़ैस…
क्या वह दोषी है? - लघुकथा - डॉ॰ सुनीता श्रीवास्तव
“अब जाकर घर आ रही हैं…!! तुम्हारे कारण माॅं चल बसी, एक भी फ़ोन नहीं उठाया तुमने?”- उत्तम (राशि का पति) भरी भीड़ में सबके सामने राशि पर …
कब तक? - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
तुम रो रहे हो कुशाग्र! पर किसलिए? अकेले यूँ रोना अच्छा नहीं, यह करके तुम मेरे साथ भी धोखा कर रहे हो। कुशाग्र कुन्दन को आश्चर्य भरी नज़…
स्वाद मर जाता है - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"फुल्की खा रही हूँ, बाद में करती हूँ बेटा फ़ोन! तुम भी खा लो कहीं" ऐसा कहते हुए समीर की माँ समीर का फ़ोन रख देतीं हैं।समीर को …
नायाब भिक्षुक - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
विद्यालय से पढ़ाकर घर लौटते समय अपने साथी आचार्य दीनू महोदय की सहमति चाहते हुए आचार्य पंकज ठहाके लगाते हैं और कहते हैं कि बच्चों को पढ…
अजनबी सहेली - लघुकथा - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
जब संजना की आँख खुली तो उसने ख़ुद को एक अनजान कमरे में बिस्तर पर पड़े पाया, उसने हिलने की कोशिश की तो उसे महसूस हुआ कि उसके सारे शरीर मे…
ग़लत-फ़हमी और समझदारी - लघुकथा - राहिल खान
एक बार एक सुनार की आकस्मिक मृत्यु के बाद उसका परिवार मुसीबत में पड़ गया उनके लिए भोजन के भी लाले पड़ने लगे। एक दिन मृत सुनार की पत्नी …
बिरजू केर पापा - बघेली लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
थोर क हरबी करा, विमला! तू त ओहिन ठे गड़ी गए। कइसन हरबी करी बिरजू के पापा, नंदी जी केर काने म अब बोलबओ मुसकिल किहे हेन अपना। त विमला! क…
बिटिया रानी - लघुकथा - राखी गौर
"अरे रीमा! तुम आ गई।" "हॉं बड़ी मॉं! और आप कैसी हो?" "मैं तो ठीक हूँ, तुम कैसी हो?" "मैं भी एक दम म…
करो! जिस लिए आए हो - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
आज छह मासीय वैदिक गणित प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम संपन्न होने के अंतिम चरण में है; यानी परीक्षा हो रही है। चूँकि वैदिक गणित विषय है इसलिए वै…
सुख की पूरकता - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
इंदिरा और आनन्द का एकलौता बच्चा पढ़ लिखकर अप्राप्त नश्वर भविष्य को सुनहरा बनाने निकल गया। माता-पिता के पास दर्जनों भृत्य रख-रखाव देखभा…
लगे हाथ पुण्य - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
घर के चौखट पर दस्तक देने पर प्रतिदिन वाली कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। कार्यालय के चाकरी से थका साहिल स्वयं भीतर जाकर सबके मृत मन के हृद…
काश मैं मोबाइल होती - लघुकथा - अंकुर सिंह
"आज काम बहुत था यार, बुरी तरह से थक गया हूँ।" सोफ़ा पर अपना बैग रखते हुए अजीत ने कहा। "अजीत, जल्दी से फ्रेश हो जाओ तु…
हाय ये बेरुख़ी - लघुकथा - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
आज साहिल और सरिता की मैरिज एनिवर्सरी है। साहिल बहुत ख़ुश है, वह ख़्वाब सजा रहा है कि सरिता आज अच्छे से शृंगार करेगी, उसकी पसन्द की साड़ी …
भागमानी माँ-बाप - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
चूँकि वेद सुबह से शाम तक माँ के फ़ोन का कोई उत्तर नहीं दिया था इसलिए माँ-पिता जी की चिंता दूर पढ़ने गए इकलौते बेटे के प्रति डाँट के रूप…
रिज़ल्ट - लघुकथा - डॉ॰ कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
आज कमलेश के बेटे राहुल का रिज़ल्ट निकलने वाला था। साथ ही उसकी बेटी गुड़िया का हाई स्कूल का रिज़ल्ट भी आने वाला था। राहुल को रिज़ल्ट की उतन…
अच्छे पड़ोसी - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
लिफ़्ट से अपने दसवीं मंजिल स्थित कमरे में चढ़ते हुए मैंने नोटिस पढ़ा "श्रीमती मुखर्जी का एक सौ रुपए का नोट कहीं गुम हो गया है। पान…
बेटी - लघुकथा - डॉ॰ यासमीन मूमल 'यास्मीं'
(ऑल इंडिया अस्पताल का कैंसर वार्ड) याशी - माँ अब कैसी तबियत है? माँ - घबराओं नहीं बेटा बेहतर हूँ। याशी - मगर... माँ मुस्काते हुए पगली …
ख़ुशी का राज़ - लघुकथा - प्रवेंद्र पण्डित
रमन मायूस मन लिए पैदल ही कारखाने से घर की तरफ़ निकल पड़ा। मन में विचारों का मंथन चल रहा था। आख़िर पाँच हज़ार तनख़्वाह में कैसे घर चलेगा,…
आख़िर क्या करता? - लघुकथा - प्रवेन्द्र पण्डित
पूरी ऊर्जा युवावस्था का अंतिम चरण काम और नाम की प्रबल चाह लिए साहित्यिक विचारों का सैलाब हृदय में हिलोरें मारता हुआ, वहीं युवा संतान ब…
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