बिटिया रानी - लघुकथा - राखी गौर

"अरे रीमा! तुम आ गई।"
"हॉं बड़ी मॉं! और आप कैसी हो?"
"मैं तो ठीक हूँ, तुम कैसी हो?"
"मैं भी एक दम मस्‍त, हमेशा की तरह।" (हँसते हुए)
"अच्‍छा अच्‍छा ये बताओं तुम इतनी लेट कैसे हो गई? मैं कब से तुम्‍हारी राह देख रही हूँ।"
"अरे बड़ी मॉं! मेरी बस लेट थी, इसलिए लेट हो गई।
अच्‍छा ये बताइये बड़े पापा कहा है? और मेरे दोनों प्‍यारे भाई कहाँ है?"
"बेटा तेरे बड़े पापा मंदिर गए है और तेरे भाई अभी कोचिंग से आए फिर दोस्‍तों के साथ बाहर घुमने चले गए।
अरे क्‍या बताऊँ बेटा तुम्‍हें? सारा दिन काम करते करते अकेले ही बीत जाता है। चल जाने दे! तू बैठ थक गई होगी सफ़र से आई है। मैं तेरे लिए गरमा गर्म चाय बनाकर लाती हूँ।"
"नहीं बड़ी मॉं! आप बैठिए मैं लाती हूँ चाय हम दोनों के लिए।"
"नहीं बेटा! तू थकी होगी।"
"अरे बड़ी मॉं! मैं बस में बैठ कर आई हूँ, खड़ी-खड़ी थोड़ी ना आई हूँ जो थक जाऊँगी, वैसे भी मैं बस में एक जगह बैठ-बैठ कर थक गई हूँ। आप बैठिए, मैं लाती हूँ गरमा गर्म चाय।"

"अरे बड़े पापा आ गए।
कैसे हो बड़े पापा?"
"अरे रीमा! कैसी हो बेटा? मैं ठीक हूँ। ये लो बेटा! इस थैले में सब्जियॉं है, अपनी बड़ी मॉं को दे आओ रात के खाने की तैयारी करेगी।"
"बड़े पापा! मैं हूँ ना! मैं करूँगी रात के खाने की तैयारी।"
"बेटा! तुम रहने दो तुम्‍हारी बड़ी माँ कर लेगी। तुम आराम करो बेटा।"
"बड़े पापा! कर लूँगी आराम भी, अभी काम ख़त्म होने के बाद।
मैं ज़रा बड़ी मॉं का काम में हाथ बटॉं कर आती हूँ।" (रीमा रसोई में जाते हुए)

बड़ी मॉं ने सब्‍जी काट कर छौंक लगाया, इतने में रीमा ने आटा गूँथ कर रख दिया, तब तक दोनों भाई घर आए, कपड़े जूते यहॉं वहॉं फेंक कर माँ को आवाज़ लगाई– "मॉं खाना बन गया क्‍या? बहुत जोरो की भूख लगी है।"
इतने में रीमा आई "अरे भईया! पहले आप लोग कपड़े और जूते व्‍यवस्थित रखिए। हाथ मुँह धोइए तब तक खाना तैयार हो जाएगा।"
"अरे रीमा! कैसी हो कब आई? आते से ही मास्‍टरगिरी झाड़ने लगी।" (हँसते हुए)
"हॉं भैया! मैं ठीक हूँ चलो चलो उठ कर चलिए और फिर खाने पर बात करते है" और रीमा रसोई में चली गई, अपनी बड़ी मॉं से रोटियॉं बनाने में मदद की।
"बड़ी मॉं! आप खाने की प्‍लेट रखिए तब तक मैं इतनी रोटियॉं बनाती हूँ।"
रीमा ने पूरी रोटियाँ बनाई, तब तक बड़ी मॉं ने सारी प्‍लेट, पानी इत्‍यादि सामान रखा। रीमा ने सारी रसोई साफ़ की। फिर सभी ने साथ में खाना खाया, खाने के बाद दोनों भाई उठकर बेड पर लेट गए। बड़े पापा खाने के बाद ठहलने चले गए, रीमा ने खाने के बाद सारी प्‍लेट उठाकर सिंक में रखी।
"अरे रीमा! रहने दे बेटा! जब से आई है, तब से काम ही कर रही है, अब थोड़ा आराम कर लो बेटा, ये सब मैं कर लूँगी।"
"क्‍या हुआ बड़ी मॉं! यदि थोड़ा सा आपके काम में हाथ बटॉं दिया, वैसे भी तो आप रोज़ अकेले ही सारा काम करती है और वैसे भी मुझे घर के कामों में हाथ बटाना अच्‍छा लगता है। घर पर भी जब मैं रोज़-रोज़ कॉलेज, कोचिंग से बोर हो जाती हूँ तो घर के काम में मॉं की मदद करती हूँ। इससे मूड फ़्रेश हो जाता है और मॉं की मदद भी हो जाती है। चलिए बड़ी माँ! मैं बर्तन धोने में आपकी मदद कर देती हूँ, फिर हम आराम से बाते करेंगे।"
बड़ी मॉं रीमा का सर सहलाते हुए मुस्‍कुराई। "अच्‍छा ठीक है, मेरी मॉं।"

अगले दिन सुबह सभी उठे, रीमा अपनी बड़ी मॉं के साथ उठी और बड़ी मॉं के साथ घर के कामों में मदद की फिर दिन में दोनों मॉं बेटी ने गपशप की। इसी तरह हँसी ख़ुशी दो दिन बीत गए, रीमा का घर जाने का वक़्त आ गया।

"अच्‍छा ठीक है बड़ी मॉं! मैं चलती हूँ।"
"अपना ध्‍यान रखना भईया! आप लोग बड़ी मॉं को काम में मदद करना।"
"बड़े पापा आप अपनी सेहत का ध्‍यान रखना"
तभी बड़ी मॉं के ऑंखों में आँसू आ गए।
"ठीक है रीमा बेटा! तेरी जैसी बिटिया रानी हर घर में होनी चाहिए।"
रीमा की आँखों में भी आँसू आ गए।
(बड़ी मॉं से गले लगते हुए) "ठीक है बड़ी मॉं! अब आप आना" इतने में ही बड़ी मॉं ने बटुये से 500 का नोट निकाला और रीमा के हाथ में थमाते हुए कहा– "बेटा! जल्‍दी आना।"
"चेतन! और संदीप भईया! आप दोनों बड़ी मॉं, पापा का ध्‍यान रखना।"
संदीप– "चलो रीमा मैं तुम्‍हे बस स्‍टेंड छोड़ आता हूँ।"

राखी गौर - नर्मदापुरम (मध्य प्रदेश)

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