बिरजू केर पापा - बघेली लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी

बिरजू केर पापा - बघेली लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी | Laghukatha - Birjoo Ker Papa - Ishant Tripathi. सुख पर बघेली कहानी, बघेली लघुकथा
थोर क हरबी करा, विमला! तू त ओहिन ठे गड़ी गए। कइसन हरबी करी बिरजू के पापा, नंदी जी केर काने म अब बोलबओ मुसकिल किहे हेन अपना। त विमला! क होत हय नंदी जी केर काने म फुसुर-फुसर करय से, हमहूं क बताबा। ओहो बिरजू, एतना बड़ा होइगा, अपना का नहीं मालूम, फुरिन दतनिपोर हेन। नंदी जी हमार कहा अब जइहीं त भोलेबाबा का बतइहीं अउर (आगे बोलय के पहिलेन नगीचे काग़ज़ म दुइ ठे रोटी रखी रही)... होदा हो! गैया केर रोटी बछबा खाये लिहिस, मारा-मारा... (गुर्राय केर) खाय लिहिस न मल्हर मल्हर दौड़े म अपना केर। टीबी बाले गुरु जी बताइन त गौ का खबाबय के हबै। न हो विमला, त गौ म दूनौ आबत ह, गइया अउर बइल‌। ज्यादा न पोथी सिखाई, देबि देउतन क हमसे निकहा न जानब अपना, गोड़ बढ़ाई जल्दी जल्दी जउने क आजु आराम मिलय रसोइया से।
पंगत लाग, जनमदिन केर भोजन म सबसे पहिले बिरजू के पापा बइठे। भोजन आबा अउर लोगबाग परसिन, दुइन मिनट म भितरे से आबाज आबत हिबय कि ऐ हो !बिरजू केर पापा हरबी हरबी खइ थोका... घरे महिमान आये ह कोउ।
नहीं जानिन बिरजू केर पापा कि बिमला काहे कहति हइ य मेर। कुछु नहीं मिला त अपने थारिन म एक कगर भोग लगा दिहिन भगमान क... अऊ हरबिन पहिल कउर खात ह। पहिलेन कउर म खाना गोरु गदहा बाला लाग। जिउ-नकुआ बाँध खाइन और हरबी हरबी म आख़िरी केर भगबानओ के भोग अनजान खाय लिहिन... दुई मिनिट क पछिताने फेर सोचिन य क चमत्कार आय। जउन खाना भगमान क भोग लगा रहा; ओखर स्वाद त बहुत मीठ रहा हबै। लखि गे बिरजू केर पापा कि भगमान केर जे होइ जात हय, ओखर अइसै अबगुन हेरा जात ह।

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्य प्रदेश)

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