संदेश
धरा का गीत - कविता - मेघना वीरवाल
बसा है धरती के कण कण में प्रेम दया और स्वाभिमान, कहने को महज़ शब्द ही यहाँ मिलेंगे अतरंगी विधि विधान। नित नया भाव जगाती करके सूरज का गु…
सूर्य की धरती - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
मैं धरती तू सूर्य मेरा... तेरे "प्रकाश" से चमक रही, नित हरित दूब सी महक रही, विघ्नों के विराम अवसर पर, शरद सा शीतल हुआ सवेरा…
मायूस धरती - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
आँचल में मैंने तुम्हे खिलाया, बारिश का निर्मल जल पिलाया, आशियाना बनाने को दिया स्थान, बरसाया मैंने तुम सब पर दुलार। फल खाकर मेरे मिटाई…
मेरे देश की धरती - घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
मेरे देश की धरती, साहस उर भरती, लहरें तिरंगा प्यारा, हिंदुस्तान हमारा। जोश जज़्बा हौसलों की, भरते नई उड़ान, जोशीले स्वर में गाते, जय हि…
प्यासी धरा - कविता - महेन्द्र सिंह राज
घनघोर घटा मड़राई अम्बर में बादल छाए, करते हैं आँख-मिचौनी जब इधर उधर को धाए। बादल की आँख-मिचौनी अब देख धरा हरषाए, वारिद मिलने को आतुर …
धरती अम्बर - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
धरती अम्बर अरुणाभ मुदित, श्यामल हरितिम नीलाभ प्रकृति, मुस्कान धरा नित नवल प्रगति, निशि चन्द्र प्रभा जग शान्ति खिले। उल्लास हृदय सम सूर…
धरती की चेतावनी - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मेरे प्यारे बच्चों मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ? क्या क्या बताऊँ? तुम्हें अपनी धरती माँ की चिंता शायद नहीं हो रही है, इसीलिए मेरी साँसे घु…
व्यथा धरा की - तपी छंद - संजय राजभर "समित"
चीख रही धरती। कौन सुने विनती।। दोहन शाश्वत है। जीवन आफत है।। बाढ़ कभी बरपा। लांछन ही पनपा।। मौन रहूँ कितना! जख्म नही सहना।। मान…
सावन पर्व है धरती के सिंगार का - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
फुहारों के रूप में भक्ति और श्रृंगार मिश्रित अमृत बरसता है। इस महीने में सावन की फुहारें जीवन में नया रंग भर देती हैं। चारों…
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