बसा है धरती के कण कण में
प्रेम दया और स्वाभिमान,
कहने को महज़ शब्द ही
यहाँ मिलेंगे अतरंगी विधि विधान।
नित नया भाव जगाती
करके सूरज का गुणगान,
चहक उठते मनचले भी
देख यहाँ के खेत खलिहान।
वीर सपूतों की धरती है
माटी के हर कण में रचा है ख़ून,
कई शूरवीरों का समर्पण इसमें
इतिहास रच गए होकर बलिदान।
मेघना वीरवाल - आकोला, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)