संदेश
ड्यूटी की ब्यूटी - लघुकथा - प्रमोद कुमार
पिछले चुनाव का यात्रा वृतांत सुनकर ही मिश्रा जी ने इस बार संपन्न होनेवाले पंचायत चुनाव में पिताजी का नाम चुनाव ड्यूटी से हटवाने का फ़ैस…
सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित - ग़ज़ल - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित अब किसी भी जगह पर मरता नहीं है आदमी बँट गए अब तो स्वयं भगवान कितनी जाति में अब सभी की अर्…
कई रास्ते - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कई रास्ते फूटते हैं; जीवन के उत्स से। कहीं कोयल मधुर राग छेड़ती है, तो कहीं घुप्प अंधेरा। कहीं झरनों का सुंदर संगीत है; तो कहीं झिंगुर…
इस इतिवार - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
इस इतिवार को निठल्ला बैठना चाहता हूॅं। बहुत पुरानी कीलें है, हृदय से चुनना चाहता हूॅं। जिन्हें कभी फिर बिनने का कहा था, उस समय व्यस्त…
यह समय एक क्रांति का है - कविता - श्रवण सिंह अहिरवार
यह समय एक क्रांति का है और क्रांति हममें ही होनी है जिसमें विद्रोही होंगे हमारे हाथ जो लिखेगें एक नई दास्ताँ दास्ताँ होगी हमारी-तुम्हा…
मन का नाप - नवगीत - सुशील शर्मा
तुमको अपना मन समझा था पर तुम भी तो निकले आस्तीन के साँप विषधर चारों ओर घूमते रहे फुसकते और भभकते कभी नहीं डर लगता था साथ तुम्हारा पाकर…
फ़ुर्सत से - कविता - मयंक द्विवेदी
फ़ुर्सत से शहर तुम भी आना गाँव पर जब भी आओ आना नंगे पाँव देखों तो सफ़र इन पगडंडियो का इस दो जून की जद्दोजहद का इस धूप में कडी मशक्कत का…
आँखों में नमी हैं - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
क्यूँ जा रहे हो यार, मुझमें क्या कमी हैं, झूठा नहीं हूँ मैं, देख, आँखों में नमी हैं। मेरे दिल में बह रही प्रेम की ठंडी बयारें, फिर भी …
इन चक्षुजल की वाणी है मौन - कविता - अनमोल
इन चक्षुजल की वाणी है मौन दबकर स्वर प्रवाहित जग में बाँध दिया है बंधन मुझमें, हूँ दूर कैसे, बस निज अश्रु रहे सदा सह पग-पग में; ले मृसढ…
राहों का अकेलापन - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
आसमान को देखूँ, पर रंग सभी धूमिल हैं, धरती से पूछूँ तो उत्तर बड़े निर्जीव हैं। हवा की सरगम भी अब शोर सी लगती है, मन की हर परत पर बस पी…
पछतावा - गीत - संजय राजभर 'समित'
आज बहुत पछताता हूॅं मैं, नाहक उसे रुलाया था। वो थी सच्ची प्रेम दिवानी, आख़िर क्यों ठुकराया था? लिए निवेदन घुटनों के बल, बाॅंवरी गिड़गिड…
चक्रव्यूह - कविता - अनिल पुरबा 'अहमक'
रास्तों में कई सवाल मिले, कोई पुछे कब, कोई पुछे कौन, कोई पुछे कैसे, कोई पुछे कहॉं... इन सवालों के चक्रव्यूह में फँसा मैं, कभी जयद्रतों…
शब्दों में मान मर्यादा - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
शब्दों में ढकी मान मर्यादा, शब्द बिना जीवन ये आधा। शब्द कहीं कम हैं कहीं ज़्यादा, शब्दों से ही सारी बाधा। शब्द ही तीर, शब्दों में पीड़,…
मेरी अधूरी कविताएँ - कविता - रामानंद पारीक
वो झाँकती हैं, डायरी के पन्नों से और ताकती है, मेरी क़लम और शब्दों को... अपने अधूरेपन की दुहाई देती, बार-बार बुलाती है मुझे... बहुत अरस…
सीता - मत्तगयंद सवैया छंद - सुशील कुमार
राम गए वनवास तो राम के साथ में साथ निभा गई सीता, प्रेम पुनीत चराचर में सचराचार को बतला गई सीता। सीय को सीय बनाया जो राम तो राम को राम …
यह दीप है - कविता - सेवाराम
यह दीप है भावनाओं का गीत है, अगर इसका बोध हो गया तो आत्मीय फ़तह है, हयात के द्वंद के पथ पर चल के अपने जीवन की सार्थकता समझ के कर ली संक…
रुकना तेरा अंत नहीं है - कविता - रूशदा नाज़
सपने को उस ऊँचाइयों तक देखा था मैंने, खग को उड़ते देखा था, पंछियों की भाँति उड़ान भरना चाहते दूर तलक फिर, निराशाओं ने मुझे ऐसा घेरा भी…
जब ख़ुद से मेरी पहचान हो - कविता - अनुराधा सिंह
अतीत की गहराइयों में ज़िंदगी के गोपनीय चेहरों को चूम न जाने कितने सवालों के जवाब पूछे नश्वर शरीर के नश्वर रिश्ते ज़िंदगी भी ख़्वाबों के ख़…
उठो कवि - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'
फूलों की मकरंद है छाया हर्ष अपार उठो कवि इस भोर में लिखो नवल शृंगार लिखो नवल शृंगार प्रेम के इस उपवन में हो कोई न द्वंद कभी इस चंचल मन…
सीने से जो लगाता था तस्वीर क्या हुई - ग़ज़ल - ममता गुप्ता 'नाज'
सीने से जो लगाता था तस्वीर क्या हुई, दिल में बसी थी तेरे जो वो हीर क्या हुई। लेने लगे हैं काम ज़ुबाँ से वो आजकल, उनकी निगाहे नाज़ की शमश…
मायूस - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गिरी अचानक आपदा, भाग्य रहे हम कोस। धरे हाथ पर हाथ हम, करते बस अफ़सोस॥ मिले राह गुमराह को, नई सीख हर हार। बने धीर साहस सबल, मिले धार पत…
झारखंड के माटी - खोरठा कविता - विनय तिवारी
झारखंड के माटी दादा ,पूजे के समान रे, झारखंड राइज हामर देसेक सान रे, देसेक सान ऐ दादा, देसेक सान रे। देसेक सान ऐ बहिन देसेक सान रे॥ पह…
कभी सोचता हूँ मैं - कविता - डॉ॰ मुकेश 'असीमित'
कभी सोचता हूँ मैं, बैठा हुआ आँगन के इस कोने में, सूरज की किरणें भी जहाँ लाज के पर्दे से झाँकती हुई आती हैं। जहाँ हवाओं की सरगम पेड़ों…
कविता तुम हो चिर-परिचित - कविता - राघवेंद्र सिंह
किसी अपरिचित प्रांगण में छाया-सी बनती हो श्यामल। किसी आर्द्र चितवन को आकर, वायु-सी करती हो निर्मल। स्मृतियों की प्राण निधि तुम, तुम नि…
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