संदेश
प्रेम - दोहा - संजय राजभर "समित"
वियोग अब मुश्किल हुआ, अगन प्रेम संताप। दर्द दिया दिलवर अगर, दवा बतायें आप ।। हुई चकित मैं देखकर, मधुर-मधुर मुस्कान। पगली सी बड…
मजदूर, मालिक और कोरोना - कविता - सुधीर कुमार रंजन
हां, मैं मजदूर हूँ, आप मालिक फर्क सिर्फ इतना है कि- मेरा जन्म एक मजदूर के घर, और आपका एक मालिक के घर। मेरा जन्म हुआ हो, या आप…
सत्कर्मों से जग सफल - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सत्कर्मों से जग सफल, साहस धीर विनीत। अलस तजे पथ उद्यमी, मिले सुयश मधुप्रीत।।१।। स्वार्थ चित्त मद मोह जग, भूले सत् आचार। कामी खल…
फूल से पत्थर का संवाद - कविता - ममता शर्मा "अंचल"
इक दिन फूलों से पत्थर की बात हुई बात कहूँ या तानों की बरसात हुई तू है बहुत कठोर, कहा जब फूलों ने साथ दिया फूलों का तीखे शूलों …
है तरुण देश भारत विशाल - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी
कलियों पर मादक लाली है कानन, उपवन हरियाली है, कोयल की तान मधुर बिखरी धरती लगती नूतन , निखरी। मं…
मुक्त आकाश - कहानी - सुधीर श्रीवास्तव
घनघोर वारिश के बीच कच्चे जंगली रास्ते पर भीगता काँपता हुआ सचिन घर की ओर बढ़ रहा था। उसे माँ की चिंता हो रही थी,जो इस विकराल मौसम म…
हिन्दी है तो भारत है - कविता - सुनीता रानी राठौर
भारत की प्रतिष्ठा और सम्मान हिन्दी। भारत की विशेषता का प्रतीक हिन्दी। विविधता में एकता भारत की पहचान। भाषाओं की समग्रता हिंदी क…
हताश एकलव्य - कविता - मनोज यादव
ऐ द्रोण तुझे, स्वीकार मै करता फिर से अंगूठा, अर्पण करता। बोल तुझे, और क्या चाहिए क्या मस्तक, गुरु दान करू मैं। प्रतिदिन निश्छल…
जो अंधेरे से रोशनी में लाए - कविता - चन्द्र प्रकाश गौतम
जो अंधेरे से रोशनी में लाए कोयले से हीरा बनाए हम भूल कैसे जाएं ऐसे गुरु को जो बहते नाव को दिशा बताए…
शिक्षक का सच्चा स्वरूप - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
चरित्रवान शिक्षक बनने के लिए शिक्षक को अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान होना चाहिए। शिक्षक को चाहिए कि वह स्वयं के स्वरूप को पहचानते हु…
मानवता - कविता - प्रवीन "पथिक"
देखा बुढ़िया को, घास छिल रही थी पथ के किनारे। अस्थि पंजर ही अवशेष, काया झुकी, त्वचा पर झुर्रियां। बयां कर रही थी उसकी जीवन गाथा।…
फूल और काँटे - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
फूल और काँटे जीवन बन, मधुरिम खूशबू महकती हैं। नित गन्धमाद पंकिल सरोज, सुख दुख तटिनी बन बहती हैं। काँटें नित स…
नवीन स्त्रीवाद - कविता - मनोज यादव
मैं कलंकित अतीत को धिक्कारती हूँ उस कदीमी समाज को धिक्कारती हूँ। मैं स्त्री हूँ, हूँ मैं नारी मैं अब जरा जोर से चिंघाडती हूँ।। …
तीर्थ यात्रा - संस्मरण - सुधीर श्रीवास्तव
बात 2010 की है। मैं अपने ही शहर में एक कारपोरेट कं. में फील्ड वर्कर की हैसियत से कार्य कर रहा था। हमारे शाखा प्रबंधक राकेश कुमार जी…
समाज का आईना - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
औरत है तुम्हारे समाज का आईना, खुद को देखो और पहचानों। कैसे दिखते हो तुम असल में, अपनी असलियत भी जानों।। कुछ शब्दो की माला, ये क…
नज़रें बदलो - कविता - कपिलदेव आर्य
नज़रें बदलो नज़ारे बदल जायेंगे, डटे रहे, तो सितारे बदल जायेंगे! देर से ही सही, मेहनत रंग लाती है, चल पड़ोगे तो किनारे मिल जायें…
इश्क़ हैं - नज़्म - अंकित राज
उसकी New Profile को बिना झपके घंटो देखती हैं तुम्हारी भी पलकों की पंखुड़ियां ..... तो इश्क़ हैं !! उसकी Typing पे ख़ुशी से का…
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