प्रेम - दोहा - संजय राजभर "समित"

वियोग अब मुश्किल हुआ, अगन प्रेम संताप। 
दर्द दिया दिलवर अगर, दवा बतायें आप ।।

हुई चकित मैं देखकर, मधुर-मधुर मुस्कान। 
पगली सी बड़बड़ाती,    रहती हूँ हलकान।।

गीत बनकर ओठों पर,  रहता उसका नाम।
मन मेरा व्याकुल रहे, बने न कोई काम।।

धर्म-जाति बंधन डगर, पग-पग झुलसे ताप। 
दर्द दिया दिलवर अगर, दवा बतायें आप।।

दहेज की लपटें लगी, घर-घर है चित्कार।
ऐसे में कैसे करूँ,       प्रेम सुधा सत्कार।।

मोल जहाँ होने लगे, प्रेम हवस का रूप। 
सच्ची प्रीत के पथ में, लोभ नही अनुरूप।। 

मैं मर्यादित बाला हूँ, फिर कैसा है श्राप। 
दर्द दिया दिलवर अगर, दवा बतायें आप।।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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