मजदूर, मालिक और कोरोना - कविता - सुधीर कुमार रंजन

हां, मैं मजदूर हूँ, आप मालिक
फर्क सिर्फ इतना है कि-
मेरा जन्म एक  मजदूर  के घर,
और आपका  एक मालिक के घर।
मेरा जन्म हुआ हो, या आपका,
पर दोनों मां की प्रसव पीड़ा में,
लगभग उतनी ही समानता थी,
जितना की, आपके ईश्वर  की,
महान् संरचना में हम सबकी।
मेरे भी एक सिर, तो आपके  भी,
मेरे भी एक नाक, तो आपके  भी,
मेरे भी एक दिल, तो आपके  भी,
मेरे भी  एक पेट, तो आपके   भी,
मेरे भी दो आँखे, तो आपके  भी,
मेरे भी दो  कानें, तो आपके   भी,
मेरे भी  दो हाथें, तो आपके  भी,
मेरे भी दो किडनी, तो आपके भी,
मेरे भी  दो  पैरें, तो  आपके  भी।

और इतना भर ही नहीं-
उन्होंने तो सिर्फ़ लिंग के आधार पर,
पुरूष और स्त्री की रचना की,
पर, आप ने कभी सोचा कि-
मां के गर्भ से निकलते ही,
मैं मजदूर और आप मालिक,
फिर कैसे हो गये ?
और देखते ही देखते,
अमीर-गरीब, ऊंच-नीच,
जाति, धर्म, राष्ट्र और भाषा की,
मेरे और आपके बीच,
विभाजनकारी
बर्लिन की दीवार,
कैसे खड़ी हो गई?
जबकि मैं और आप भी,
मां के गर्भ से,
जब धरती पर,
पहली बार आये तो,
तो दोनों हाथ, खाली ही आये,
दोनों के बदन पर,
ना कोई अंग वस्त्र,
और ना कोई गहना,
सबकुछ तो,
समान ही था।

आखिर ऐसा क्या हो गया ?
पलक झपकते ही,
मैं मजदूर बन गया, आप मालिक,
मैं निर्धन और आप सम्पन्न,
मैं भूमिहीन और आप भूमिहार,
मैं शुद्र और आप स्वर्ण,
मैं संस्कारहीन, आप संस्कारी,
मैं जजमान, आप पुजारी,
मैं ज्ञान हीन, आप महाज्ञानी,
मैं रंक,आप महाराजा,
मैं झाड़खंडी, आप बिहारी,
मैं मगहीया, आप भोजपुरीया,
मैं इंडियन, आप पाकिस्तानी।
आखिर माज़रा साफ़ है साहब,
देश-विदेश और समाज में,
मानव को बांटने वाली,
सारी विभाजन रेखाएं,
मानव निर्मित कृत है,
ईश्वर निर्मित कदापि नहीं,
मनुष्य और उसका समाज,
लोभ और लालच के,
चक्कर में, आकंठ डुब,
पु़ंजी के खेल में,
मनुष्य अपनी मनुष्यता खो,
मनुष्य का शोषक बन गया है,
यही मेरी मजदूर बनने की,
और आपके मालिक बनने की,
ऐतिहासिक पर सत्य कहानी है,
जो बदस्तुर, निरन्तर जारी है।

प्रमाण के लिए,
ज्यादा दूर जाने की,
क्या जरूरत है साहब,
अपने ही देश के संदर्भ में,
कोराना काल को ही,
आप ले लीजिए ना,
लॉक डाउन में,
मनुष्य की मनुष्यता में,
कितनी गिरावट आई है,
वह शीशा की तरह साफ़,
आईने में झलक जायगी,
एक तरफ मजदूर,
जो भूखे-प्यासे, नंगे पांव,
सड़कों पर, सरपट
चले ही जा रहें हैं,
और दूसरी तरफ़,
मालिक का वह वर्ग,
जिनकी दुपहिया, चारपहिया वाहन,
आज़ भी विशेषाधिकार प्राप्त,
आप नेशनल हाईवे पर,
रेंगते देख रहे हैं।
एक तरफ मजदूरों को,
कोराना कैरियर के संदेह पर,
उन्हें जगह-जगह, रोक-टोक कर,
सेंटाईज और कोरेंटाईन कर,
उनके साथ अछुतों जैसा,
अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है।
वहीं मालिक वर्ग के लिए,
जो कोरोनाकाल में,
घर से बाहर नहीं निकलते,
उनकी तो कोरोना जांच की,
सवाल ही मत कीजिए,
वैश्विक महामारी में उन्हें उल्टे,
विशेष सुविधा भी दी जा रही है,
उनकी जरूरियात की समान,
उन्हें ऑन लाइन के जरिए,
डिलेभर ब्यॉय, घर पहुंचा रही है।
इतना ही नहीं,
वैश्विक राहत पैकेज के नाम पर भी,
मालिक वर्ग के हिस्से ही,
मोटी रकम हाथ लगी,
और मजदूर के हांथ सिर्फ,
बुजुर्ग, विधवा, दिव्यांग को,
हजार रूपए का पेंशन,
मेहनतकश किसान को,
दो हज़ार रुपए की राहत,
जन धन खाताधारक महिला को,
पांच सौ रूपए की सहायता,
उज्ज्वल योजना के लाभार्थियों को,
मुफ्त रसोई गैस का सिलेंडर,
मनरेगा में मजदूरों की,
मजदूरी में बाईस तेईस,
रुपए की मामुली बढ़ोतरी,
राशन कार्ड लाभार्थियों को,
नियमित मिल रहे राशन के,
अनाज का दुगना राशन,
जो राशनकार्ड धारी नहीं उन्हें,
महीना में पांच किलो अनाज
और एक किलो दाल,
डेढ़ लीटर किरासीन,
और वह भी सिर्फ,
तीन महीनों के लिए।

सुधीर कुमार रंजन - देवघर (झाड़खंड)

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