है तरुण देश भारत विशाल - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी

कलियों  पर  मादक  लाली    है 
कानन,  उपवन   हरियाली    है, 
कोयल की  तान मधुर   बिखरी 
धरती   लगती   नूतन , निखरी। 
          मंजर    महके,  झूमे    रसाल
          है तरुण- देश भारत - विशाल। 

फूलों   पर    मधुकर    बौराता 
रस की  हाला  जब  पी  आता, 
सावन  के  मस्त  झकोरों    में 
नाचे  यौवन  वन -  मोरों    में। 
          खिलता  इंदीवर   ताल  - ताल
          है तरुण - देश भारत - विशाल। 

बहती  तन  छू  शीतल    बयार
मकरंद -  गंध  अनुपम,  अपार, 
अंचल  उड़ता  लहरा   सर    से 
बहकी  घाटी   भर   केसर    से। 
          धानी     चूनर    है    बेमिसाल
          है तरुण - देश भारत - विशाल। 

पावस  रिमझिम झनकार  हुई 
सूखी   नदियों   में   धार   हुई, 
पुलकित कूलों में  स्वर- लहरी 
उल्लसित, मग्न  सरिता गहरी। 
          चमका  सागर  का  प्रखर-भाल
          है  तरुण- देश  भारत - विशाल। 

नभ  में  तारों  के  खिले  सुमन 
गिरते  शबनम  की   बूँदें   बन, 
सजती भारत  की  दिव्य -धरा 
मोती  से  अंचल  भरा  - भरा।
          प्राची   बिखरा   देती  उजाल
          है  तरुण- देश भारत -  विशाल। 

अनिल मिश्र प्रहरी - पटना (बिहार)

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