संदेश
बिंदु-बिंदु शिल्पकार है - कविता - मयंक द्विवेदी
सीमित ना हो दायरा उर के द्वार का, प्रकृति भी देती परिचय दाता उदार का। यूँ ही नहीं होता सृजन उपलब्धि के आधार का, छूपी हुई नींव में आरंभ…
शिशिर सुंदरी - कविता - सतीश पंत
नवल भोर संग धवल कुहासा शिशिर ओढ़ जब आई, वसुंधरा से शैल शिखर तक मेघावली सी छाई। शिशिर सुंदरी रूप मनोहर देख देह सकुचाई, शीत वायु के प्रब…
मुस्कान से भरी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
खेत में फ़सल है मुस्कान से भरी। ख़्यालों के क़ाफ़िले हैं रुके हुए। बरगद के कंधे लगता झुके हुए॥ फ़सलों की साड़ी लगती हरी-हरी। नन्हे-नन्हे हा…
पर्यावरण संरक्षण - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
निज राष्ट्र की पुनीत पावन धरा को, मिलकर हरियाली से प्रफुल्ल बनाएँ। पर्यावरण संरक्षण में हम दे योगदान, प्रकृति के प्रति आत्मकर्तव्य निभ…
हे वसुधा के शृंगार - कविता - मयंक द्विवेदी
हे! वसुधा के शृंगार हे! प्रकृति के उपहार हे! सुवासित मल्हार हे! ऋतुओं के ऋतुराज देख रहे नयन शबनम शबनम के जलकण में श्याम मेघों के दर्प…
भौतिकवाद, प्रकृतिवाद और हमारी महत्वाकांक्षाएँ - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
सुदूर गाँव और जंगलों मे बैठा कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति और उसका परिवार जो खेती बाड़ी करता है, गाय, भैंस और बकरियाँ चराता है, हाथ मे स्मार्ट फ़ो…
प्रकृति का प्रेम - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
तिमिर फैले धरा पर जहाँ-जहाँ, स्नेह लौ से दीप जलाए जाते। खिलखिलाते यह धरा चहुँओर, प्रेम पुष्प के पौधे लगाए जाते। करुणा की इत्र महकते धर…
पर्यावरण - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
पर्यावरण है प्रकृति का आखर, सूरज, चंदा, धरती और बादर। प्रकृति का अद्भुत चहुँदिशि घेरा, चंदा डूबा फिर हुआ सवेरा। कौन इन सबसे अनजाना होग…
मैं प्रकृति प्रेमी - कविता - रूशदा नाज़
मैं प्रकृति प्रेमी वो मेरी हमसाथी। मैं उदास हूँ, वो भी उदास हो जाती, मैं निराश हूँ, वो भी अश्क बहाती। उमड़ते-घुमड़ते बादल मेरे दु:खो क…
हरी भरी हो धरती अपनी - कविता - बृज उमराव
हरी भरी हो धरती अपनी, देती जीवन वायु। पथ में पथिक छाँव लेता हो, शुद्ध करे स्नायु॥ तापान्तर में वृद्धि दिख रही, जागरूक हो जनमानस। …
ब्रह्मानंद का स्वर्ग दौरा - कहानी - अशफ़ाक अहमद ख़ां
यू॰पी॰ के कई ज़िले पिछले दिनों सूखे की चपेट में थे। किसान पूरे सावन इंद्रदेव की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते रहे, इंद्र देव को ख़ुश करने…
नयनों के दीप जले हैं - कविता - राकेश कुशवाहा राही
नयनों के दीप जले हैं, काजल से सुन्दर सजे हैं। अंतस मे कुछ सपने हैं, जिसमें जीवन के रंग भरे हैं। नयनों के दीप जले हैं। पीली सरसों झूम र…
जुगनू - कविता - सुनील कुमार महला
जुगनुओं सा होना चाहिए जीवन जग को प्रकाशमान करते मिटाते अँधियारा घोर अँधकार में जब टिमटिमाते हैं जुगनू आनंद से भर उठते हैं अनगिनत हृदय …
अर्पित करना चाहूँ - कविता - इन्द्र प्रसाद
सूरज की किरणें जब आ करके जगाती हैं। कलियाँ प्रतिउत्तर में खिलकर मुस्काती हैं॥ ये मौन दृश्य सारा दिल को छू लेता है। उस जगतनियंता की अन…
प्रकृति और अँधेरा - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
मानते क्यों नहीं इस दुनिया में आने के लिए हर बीज ने एक अँधेरा गर्भ में जिया है पृथ्वी को तोड़कर या गर्भ की असीम प्रसव पीड़ा के बाद …
एक ठिगना पौधा - कविता - संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन'
एक विशालकाय तरु के नीचे, ख़ुद उसकी पत्तियों से ढका हुआ, पृथ्वी का अर्द्ध छिपा भाग, जिसको देखते भावों में एक अभिव्यक्ति का नया अवतरण सीध…
मेरी बेटी - प्रकृति रानी - कविता - डॉ॰ विजयलक्ष्मी पाण्डेय
कर रही भूमि का आराधन प्रकृति रानी, मैं बैठी उपवन में देख रही मंद स्मित! भोर बेला में धरती का अनुपम शृंगार, गुलमोहर पुष्पों की लाल सुर्…
सबका जीवन आनंदमय बना दे - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
मिले मुंडेर पर, सोंधी-सोंधी ताज़ी हवा का, ये झोंका जो, कभी धूप खिले, कभी छाँव बने कुदरत ने रंग बिखेरा जो। आसमान में, हलचल करती काली घट…
पर्यावरण संरक्षण - कविता - रमाकांत सोनी
कुदरत का उपहार वन, जन जीवन आधार वन। जंगल धरा का शृंगार, हरियाली बहार वन। बेज़ुबानों का ठौर ठिकाना, संपदा का ख़ूब खजाना। प्रकृति मुस्कुरा…