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विधा/विषय "ज़ख़्म"
ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से - ग़ज़ल - अरशद रसूल
शुक्रवार, नवंबर 12, 2021
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तकती: 1222 1222 1222 1222 ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से, डर नहीं लगता हमें अब आँधिय…
ज़िंदगी - कविता - अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी"
गुरुवार, जून 10, 2021
बे-बाक, बे-हिचक हो कर लिखती हूँ, मैं ज़िंदगी की दास्ताँ, कुछ ज़ख़्म नासूर हो रीस्तें रहें। ज़िंदगी भर ना मिली नासूर ज़ख़्मों की कोई दवा, पीड…
मरहम - कविता - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
सोमवार, मई 17, 2021
ज़ख़्म बहुत गहरे हैं उनके, हर आँख यहाँ भीगी है। किस किसके आँसू पोछेंगे, मानवता ही ज़ख़्मी है। मरहम ही कम पड़ जाएगा, तन-मन सारा छलनी है, अप…
ज़ख़्म मेरा सुखा दिया उसने - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी
गुरुवार, फ़रवरी 25, 2021
ज़ख़्म मेरा सुखा दिया उसने, मुझको ऐसे हँसा दिया उसने। मेरी बस्ती में तो अँधेरा था, आके दीपक जला दिया उसनें। ढूँढने मैं चला मुहब्बत को, ह…
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