ज़ख़्म मेरा सुखा दिया उसने,
मुझको ऐसे हँसा दिया उसने।
मेरी बस्ती में तो अँधेरा था,
आके दीपक जला दिया उसनें।
ढूँढने मैं चला मुहब्बत को,
हँस के रस्ता सुझा दिया उसने।
मेरा हमराज़ हमसफ़र भी है,
दोस्ती को निभा दिया उसने।
उसकी चाहत में खो गया हूँ मैं,
मुझको आशिक़ बना दिया उसने।
मेरे हर दर्द में शामिल होकर,
हाथ अपना बढ़ा दिया उसने।
मैं मुसाफ़िर हूँ इश्क़ का रंजन,
दिल में मुझको बसा लिया उसने।
आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)