संदेश
रूप की रवानी - घनाक्षरी छंद - सुशील कुमार
काले कजरारे नैना गाल है गुलाबी और, दामिनी से दाँत चमकाय रही गोरी है। अंग-अंग कुसुमित फूले फुलवारी ज्यो, ख़ुशबू से मन को लुभाय रही गोरी …
खनकती चूड़ियाँ - कविता - राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज'
चाँद सरीखा मुखड़ा दमके सितारों सा बिंदिया चमके काले मेघ तेरे कुन्तल बिखरे लट उलझे उगीलियाँ सँवारे घिर घिरकर आई घटाओं ने सुलझे तेरे केशो…
ओ हंसिनी - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'
तेरे रूप का क्या बखान करूँ, तुम सुंदरता की मुरत हो, मृगनयनी सी आँखो वाली, चंचल और ख़ूबसूरत हो, गुलाब पंखुड़ी जैसे अधर और नेत्र तुम्हारे…
सौंदर्य - आलेख - रतन कुमार अगरवाला
आज सहसा ही मन में ख़्याल आया कि विषय “सौंदर्य” पर कुछ जानकारी प्रद लिखने की कोशिश करूँ। हिन्दी व्याकरण के अनुसार “सुन्दर” शब्द विशेषण ह…
तुम और सुंदर लगती हो - कविता - केशव झा
तुम और सुंदर लगती हो पैरों में पायल पहन कर जब झींगुर की सुर में सुर मिलाती हो। अकेली रात में छत पर चाँद को निहारती हो तो तुम और सुंदर …
बहुत ख़ूबसूरत हो - कविता - रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"
ख़ुद को नहीं देखा कभी तुम्हारी नज़र से, तुम्हारे मन में उठते अहसास से, तुम्हारी प्यार भरी सोच से। ख़ुद को नहीं गिना कभी सुंदरता की गढ…
परी - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
उसकी काया संग-ए-मरमर सी, जुल्फ़ घने हैं बादल से। वह मदमस्त बनाती है सबको, रंग-बिरंगे आँचल से। उसकी आँखें है हिरनी सी, कोयल जैसी उसकी व…
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