सौंदर्य - आलेख - रतन कुमार अगरवाला

आज सहसा ही मन में ख़्याल आया कि विषय “सौंदर्य” पर कुछ जानकारी प्रद लिखने की कोशिश करूँ। हिन्दी व्याकरण के अनुसार “सुन्दर” शब्द विशेषण है और “सौंदर्य” उसका भाववाची संज्ञा रूप।

जब कोई वस्तु, व्यक्ति, या क्रिया (प्राकृतिक या अप्राकृतिक) अपनी आभा, शोभा या स्वरूप से किसी का मन मोह लेती है या अंतर्मन में ख़ुशी या आल्हाद का भाव पैदा करती है तब उसे सुन्दर या सौंदर्य युक्त कहते हैं।

“सुन्दं राति इति सुन्दरम तस्य भाव सौन्दर्य”। अर्थात “सुन्द” को जो लाता है वह “सुन्दर” और उसका भाव जहाँ हो तो वह “सौन्दर्य”।

ब्रह्माण्ड का कण-कण अपार सौंदर्य से भरा है। पर्वत, नदी, समन्दर की लहरे, आसमाँँ में उगता चाँद, तारें, बिजली की चमक, रास्ते पर पड़ा पत्थर, गाँव की पगडण्डी, पंछियों का घोंसला, खेत में लहलहाती सरसों, बालक की मुस्कान हर चीज़ में, हर भाव में सौंदर्य की जीवन धारा बहती है। ऐसा भी नहीं की मानव को ही सौंदर्य का अनुभव होता है। जन्तु, जानवर, पेड़, पौधे सबको सौंदर्य की अनुभूति होती है। भौंरा गुलाब की ओर खिंचा चला आता है सौंदर्य की अनुभूति से आशक्त होकर। सौंदर्य का बौद्ध ही कारण है कि कोयल बसन्त के आगमन पर कुहू-कुहू अलापती है। हिरण हरित तृण से भरी भूमि से  प्रफुल्लित हो उठता है। 

जगत में सौन्दर्य की कमी नहीं है। जीवन यात्रा में मन को मोहने वाले दृश्य या भाव अनायास ही उपलब्ध हो जाते हैं। ट्रैन में सफ़र करते समय सहसा किसी ग़रीब बच्चे कि मधुर आवाज़ जब कानों में मिश्री घोलती हैं तब जो भाव उत्पन्न होता है उसकी सौंदर्य अनुभूति आप में बहुतों को हुई होंगी। हज़ारों हड्डियों के एक साथ चटकने के बराबर दर्द को सहने वाली माँ जब प्रसव के बाद नवजात शिशु की आवाज़ सुनती है तो जिस सौंदर्य का बोध होता है उसमे वह सारा दर्द भूल सी जाती है और तब उस माँ के चेहरे पर जो क्लान्ति उभरती है उस का सौंदर्य भाव भी अपने आप में अप्रतिम है। 

आधुनिक युग में मनुष्य का जीवन संघर्ष पूर्ण है। पर साथ साथ जीवन में प्रेम, और सौंदर्य जैसे भाव भी तो हैं जो हमें जीवन को जीने की प्रेरणा देते हैं।

रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)

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