तुम और सुंदर लगती हो - कविता - केशव झा

तुम और सुंदर लगती हो
पैरों में पायल पहन कर जब
झींगुर की सुर में सुर मिलाती हो।
अकेली रात में छत पर
चाँद को निहारती हो तो
तुम और सुंदर लगती हो।

जब अपनी हठखेलियों से
किसी बात पर रूठ जाती हो
और मनाने का इंतजार करती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।

जब तुम्हारी मधुर आवाज़
किसी संगीत की तान लिए
मेरे कानों मे खनकती है
और मैं अनसुना कर देता हूँ,
कि काश तुम रुठ जाओ
इसलिए कि रूठने पर
तुम और सुंदर लगती हो।

जब आँखों से कुछ बूँदें
गालों को छूती
होठों पर आ जाती है,
इस कारण नहीं हटाती हो कि
कहीं लिपिस्टिक ना मिट जाए,
तुम और सुंदर लगती हो।

तपी धूप में जब 
चेहरे के मेकअप पर
पसीने की बूँदें
सितारों की आभा बिखेरती है
और उस की चमक से तुम
उफ़-आह करती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।

जब आँखों में काजल लगाकर,
बिंदिया से भौहों को सजाकर,
किसी रातरानी की सुगंध लिए,
ज़ुल्फ़ों को खोल,
बाहों में मुझे भर लेना चाहती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।

किसी परी की भाँति जब
मेरे आँगन में मटकती हो,
फ़ुर्सत के क्षणों में
मुझे पुकारती हो,
अपने होठों को
मेरे होठों से सटाकर
साँसों का एहसास दिलाती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।

किसी कारण चला जाता हूँ
जब दूर तुमसे,
ना आ पाऊँ समय पर
तो चेहरे का रंग यूँ उड़ जाता है,
करती रहती हो
इंतज़ार मेरा तब तक,
तुम और सुंदर लगती हो।

कहीं से आता देख जब तुम
हिरनी की तरह इतराती हुई
मुझसे लिपटकर
बिछड़ने का एहसास दिलाती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।

जब रात के अँधेरों में
तुम्हारी बिंदिया रोशन करती हैं,
और मैं बेचैन हो जाता हूँ
तुम से लिपटने को,
तब फूल बनकर
भौरों को ललचाती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।

मैं कितनी तारीफ़ करूँ
तुम्हारी ख़ूबसूरती की,
मेरी क़लम रुक-रुक कर
तुम्हें पुकारती है,
और कहती है कि
केशव तुम्हारी प्रियतम तो
कविता के हर बोल में
सुंदर लगती है,
हाँ सच में तुम सुंदर लगती हो,
तुम और सुंदर लगती हो।
तुम सुंदर लगती हो।।

केशव झा - भागलपुर (बिहार)

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