बहुत ख़ूबसूरत हो - कविता - रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

ख़ुद को नहीं देखा कभी 
तुम्हारी नज़र से, 
तुम्हारे मन में उठते अहसास से,
तुम्हारी प्यार भरी सोच से।
ख़ुद को नहीं गिना कभी 
सुंदरता की गढ़ना में, 
मंद मंद मुस्काती कलियों में,
मन मोहती सुंदर तितलियों में।
ख़ुद को परखा भी नहीं कभी
ख़ूबसूरती की प्रतियोगिता में, 
गहनों की सहभागिता में,
हूर नुमा सुंदरियों में।
न जाने मगर क्यों फिर भी
मन स्वीकारता है, 
ख़ूबसूरती मेरी।
जब जब तुम कहते हो
तुम बहुत ख़ूबसूरत हो।

रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि" - विदिशा (मध्यप्रदेश)

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