संदेश
धरनी धर्म निभाना - कविता - अंकुर सिंह
साथ तेरा मिला जो मुझको, बिछड़ मुझसे अब न जाना। वपु रूप में बसों कही भी, चित्त से मुझे न बिसराना॥ साथ तुम्हारा मुझे मिला है, हर जन…
तेरी अर्धांगिनी मैं - कविता - शीतल शैलेन्द्र 'देवयानी'
मोरनी बन कभी तेरे, दिल के उपवन में विचरती थी, कितना सहज मनोभाव था तेरा मैं तब तुझसे तेरा ही पता पूछ लेती थी, चुपके-चुपके ही सही पर तु…
संगिनी - कविता - बृज उमराव
संगिनी तुम्हारी यादों में, यूँ जीवन ऐसे बीत रहा। ज्यों माली उजड़ी बगिया को, दे दे कर पानी सींच रहा।। ग़म के अँधियारे घेरे, संघर्ष शील ज…
मेरी संगिनी - कविता - सुनील माहेश्वरी
तुम्हीं मेरी प्रेरणा, तुम ही मेरा विश्वास हो, तुम मेरी संगिनी। मेरे खोए आत्मविश्वास को हमेशा जाग्रत करती हो, तुम मेरी संगिनी। चाहे परि…
दक्षिणपंथी पत्नी, वामपंथी रोटी एवं कोविड - कहानी - रामासुंदरम
आज सुमन को कोविड पॉजिटिव हुए पाँच दिन बीत चुके थे। अभी से उसे आइसोलेशन खाए जा रहा था। जिस घर की हर ईंट उसे पहचानती थी, वहीं उसे एक कोन…
वरमाला - कविता - अंकुर सिंह
जयमाला पर जब तुम मिलोगी, तुम्हारे हाथों में वरमाला होगी। नज़र झुकाए प्रिय तुम होगी इशारों से हममें सिर्फ बातें होंगी।। तुम्हारी सहेलिया…
आभार अर्धांगिनी - कविता - अंकुर सिंह
हम बस प्रिय-प्रिये नहीं, हम कदम-कदम के साथी हैं। हम बस दो जिस्म नहीं, हम जन्मों-जन्म के साथी है।। तुम ही हो मेरी सब खुशियाँ, तुम्…