धरनी धर्म निभाना - कविता - अंकुर सिंह

साथ तेरा मिला जो मुझको, 
बिछड़ मुझसे अब न जाना। 
वपु रूप में बसों कही भी, 
चित्त से मुझे न बिसराना॥ 

साथ तुम्हारा मुझे मिला है, 
हर जन्म में इसे निभाना। 
कहे ज़माना कुछ भी हमको, 
त्याग मुझे तुम न जाना॥ 

सुख दुःख और कहासुनी से, 
मुझसे तुम न अमर्ष होना। 
हालात रहें जैसे भी जग के, 
मुझसे फिर न विमुख होना॥ 

स्वत्व संग बहुतेरे फ़र्ज़ मेरे है, 
उनको निभाने मुझे तुम देना। 
श्वास रहें जब तक इस तन में, 
संग प्रिये मेरे तुम भी रह लेना॥ 

सात फेरों का परिणय नहीं, 
सात वचनों का हमारा बंधन। 
हरपल बना रहे साथ यूँ ही, 
करबद्ध करूँ ईश से वंदन॥ 

चार दिन की सौग़ात ज़िंदगी, 
हर जन्म में बस तुम्हें है पाना। 
प्रेम बाहों में लिपटी तुम मुझसे, 
धरनी धर्म हर जन्म निभाना॥ 


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