रविना बर्त्वाल - ऋषिकेश (उत्तराखंड)
शून्यगामी - कविता - रविना बर्त्वाल
बुधवार, जुलाई 02, 2025
हर कोई अपने विकल्पों का निर्धारण करता है
कल्प अकल्प के मध्य विकल्प चुन ना मेरे मन को राज़ी नहीं।
मैं स्वयं बुन ना चाहती हूँ राह अपनी
पूर्वाग्रहों से परे
तुम मुझे नहीं जान पाओगे तब तक
जब तक लिए चलोगे समागमों को
किसी भी निष्कर्ष पर पहुँच कर
अर्थ की हानि ही होगी
वहीं मिलूँगी तुम्हें जहाँ छोड़ोगे तुम गठरी किरदारों की
बाँधना मत तनिक भी मैं तो सब कुछ छोड़ के आई हूँ
अनंत तुम्हारी भेजी हुई सवारियों पर
शून्य में लीन मेरी सवारी होगी।
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