औरतें जिन्हें इतिहास जगह देगा - कविता - डॉ॰ चित्रलेखा अंशु

औरतें पढ़ रही हैं स्टेटिस्टिक
गढ़ रही हैं मैथ्स के फार्मूले
छूट रहा है उनसे रसोई
उनके भी दो ही हाथ हैं
दोनों हाथ लिखने में व्यस्त होंगे
तो कैसे बनेंगी रोटियाँ?
पुरुषों के भी दो ही हाथ हैं
दफ़्तर देखेंगे या रसोई
क्यों मच रही है हाय तौबा
पुरुष नहीं देखते हैं रसोई 
फिर भी रचते हैं इतिहास
बनातें हैं सभ्यता की विरासत
स्त्रियाँ जब नहीं बनाती हैं रोटियाँ
तब भी इतिहास कहाँ बना पाती हैं?
जब दोनों के दो ही हाथ हैं तो
एक दफ़्तर देखते हुए इतिहास रच जाता है,
दूसरा रोटी बेलते हुए कुछ कर नहीं पाता है
तो पढ़ लेने दो उसे एयरोनॉटिक्स
बना लेने दो कोई उपग्रह या रॉकेट
चला लेने दो बुलेट इन्हीं दो हाथों से
उड़ा लेने दो उसे भी हवाई जहाज
चले जाने दो उसे संसद में
रच लेने दो कविता और कहानियाँ
कर लेने दो जो वे सच में करना चाहती हैं।
रोटियाँ गोल न बन सकी तो क्या हुआ!
मन का करेंगी तो इतिहास उन्हें 
ख़ुद ही दर्ज कर लेगा एक दिन।

डॉ॰ चित्रलेखा अंशु - इग्नू (नई दिल्ली)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos