होली के रंग - कविता - प्रतिभा त्रिपाठी

साथ लेकर उमंगों को,
लिए मस्ती की तरंगों को,
ले हरे, पीले ये रंगों को,
मैं होली हूँ, तेरी होली,
आगे बढ़ रही हूँ मैं।
भिगोती चल रही हूँ मैं।।

मन का मैल हटाने को,
अपनों से मिलाने को,
बुराइयों को मिटाने को,
एक रात पहले मैं,
सदा से जल रही हूँ मैं।
भिगोती चल रही हूँ मैं।।

लहराता है जब आँचल,
पाकर लहराती बसंत बयार,
करती है जब प्रकृति,
रंग-बिरंगे फूलों से रुप शृंगार।
गुलाबी मौसम के गालों पर,
गुलाल मल रही हूँ मैं।
भिगोती चल रही हूँ मैं।।

भेदभाव को मिटाने को,
देश की एकता बनाने को,
भाईचारा बढ़ाने को,
प्यार की भावना के साथ
दिलों में पल रही हूँ मैं।
भिगोती चल रही हूँ मैं।।

प्रतिभा त्रिपाठी - झाँसी (उत्तर प्रदेश)

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