आभासी जगत - दोहा छंद - महेन्द्र सिंह राज

अध्यातम की सीढ़ियाँ, चढ़ना नहिं आसान।
हानि लाभ से दूर है, दूर मान सम्मान।।

यश अपयश को भूलकर, जपता भगवन नाम। 
प्रीति रखे भगवान से, जाता है सुखधाम।।

आत्मा अरु परमातमा, दो ही केवल रूप।
चाहे भोगी, संत हो, या ग़रीब या भूप।।

गीता में भगवान भी, बोले कर्म प्रधान।
कर्म अगर नर नहिं करे, होता नहीं महान।।

आभासी सारा जगत, जन्म मरण बस सत्य।
इसे नहीं जो जानता, बहुत दूर गन्तव्य।। 

जन्म मरण दो सत्य है, यह विधि का है लेख। 
अमर नहीं कोई यहाँ, लेख ब्रह्म का देख।।

कोई बूढ़ा हो मरे, कोई मरे जवान। 
कोई बालक ही मरे, मरता सकल जहान।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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