नदी - कविता - योगिता साहू

नदी रानी की बात निराली,
बिना कहे है प्यास बुझाती।
आओ हम निर्मल जल बचाए,
पानी को बेवजह बहने से बचाए।

दो दो बूँद जल की क़ीमत,
आज है समझ में आ रही।
वर्षा के दो बूँदों का 
आज धरती पर नाम नही।

करके इकट्ठा तालाबों में,
होने नही देंगे बर्बाद।
मिलजुलकर सब काम करेंगे,
नदी में पानी रहेंगे आबाद।

पत्थरों से लड़कर देखो,
अपना रास्ता ख़ुद बनाती।
कितनी जटिल परिश्रम कर
अपनी मंजिल को है जाती।

सिख लिया नदी से मैंने,
कितना सुंदर भाव हैं।
मंज़िल तो बहुत दूर है मगर,
अपना लक्ष्य अपने पास है।
 
दर-दर है ठोकर खाकर
मुड़कर पीछे नही देखना।
यही आपका है मूलमंत्र
निरंतर बढ़ते हैं रहना।

योगिता साहू - चोरभट्ठी, धमतरी (छत्तीसगढ़)

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