सबक़ - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

समय तेज़ी से निकल रहा है
सबक़ सीखने की सीख दे रहा है,
मगर हम मुग़ालते में जीते हैं,
समय का उपहास उड़ाते रहते हैं।
अब भी समय है सचेत हो जाएँ,
अपना ग़ुरूर छोड़ 
समय की बात मान जाएँ,
वरना बहुत पछताएँगे
समय निकल गया 
तो हाथ मलते रह जाएँगे।
सही समय पर सही सबक़
सही पाठ, पढ़ लीजिए तो अच्छा है,
वरना सबक़ लेकर भी
बहुत पछताएँगे,
हाय सबक़, हाय सबक़ रटते रह जाएँगे,
सबक़ को हाथ में लेकर 
फिर झुनझुना ही बजाएँगे,
सबक लेकर भी सिवाय पछताने के 
कुछ कर नहीं पाएँगे
सिर्फ़ माथा पीटते रह जाएँगे।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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