घूँघट - कविता - रमाकांत सोनी

शर्म लज्जा दर्शाता नारी घूँघट
सुन्दरी की सुंदरता का आवरण।
बुजुर्गों के मान सम्मान की छवि
संस्कारों मर्यादाओं का एक चरण।।

सनातन संस्कृति में रिवाज़
यवन काल में पनप गया।
आतताई शासकों का भय
जन कुरीतियों में छला गया।।

पद्मिनी का जौहर साक्षी 
आन बान और शान का।
घूँघट बन गया प्रतीक 
नारी के मान सम्मान का।।

महिला सशक्तिकरण अब
सब बातें लगती है बेमानी।
घूँघट में शोषण होता इनका
तज दो अब नारी हिंदुस्तानी।।

शिक्षा प्रकाश से उजियारा
चेहरा ये दमकना चाहिए।
घूँघट नारी मुख से हटे
चाँद ये चमकना चाहिए।।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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