मैं परी हूँ जीवन की - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मैं परी हूँ जीवन की, 
न केवल खुशी अपनों की,  
अहसास हूँ हर पल,
चाहत हूँ नवयुग के आधान का, 
धरणी हूँ ममता का सतत्
क्षीरसागर पालिका भविष्य का
प्रेमांचल की शीतल छाया हूँ। 
नवकीर्ति की सर्जिका 
नव परणीता कशिश हूँ जिंदगी का, 
बाप की नैनों की तारिका,
अरमान हूँ उनके पहचान का, 
लज्जा हूँ माँ कोख़ की,
वरदान हूँ कौलिक आन
अस्मिता व सम्मान हूँ कुल की,
सबसे खाश सबसे अज़ीज, 
निष्ठा हूँ सहोदर भाई का अनवरत, 
करुणा की सरिता अविरल 
निच्छल प्रवाहित स्नेहिल धार हूँ मैं, 
शान्ति हूँ, कान्ति हूँ उभयकुल का,
पर क्रान्ति भी हूँ शक्ति बन 
अवसाद और अन्याय का प्रतिकार मैं।
हूँ खुशी परवान बनकर आ परी 
गुल्फ़ाम बनकर ज़िंदगी में आ ख़ड़ी,
दिल्लगी की महफ़िल सजा हूँ प्रेयसी भी,
चारु चंचल मानसपटल समभावयुत,
प्रियंका मैं न ही केवल, हूँ प्रेरणा भी, 
माँ हूँ, तनया किसी की, बहन भी
अनेकों अनसुलझे रिश्तों में फँसी  
अनबुझ पहेली मैं परी। 
हूँ अनोख़ी ख़ूबसूरत देवयानी, 
हर गमों की आईना बन मैं ख़ड़ी, 
अर्धांगिनी जीवनसखा अनज़ान का, 
परित्याग कर निजगेह को अनचाही पड़ी,
सुगृहिणी परगेह का जीवनान्त तक,
त्यागमूरत हूँ बनी सहिष्णु पथ, 
उपालम्भ के आगोस में आबद्ध मैं,  
परीक्षार्थी रही हूँ सदा मैं अग्निपथ, 
पलकों पे बिछायी क्यों नहीं परगेह को, 
तन मन धन समर्पित सबको पिलायी नेह को,
हूँ लाडली लक्ष्मी सदा उपमान से श्रावित परी,  
पर आज भी सुशिक्षिता बन कर्मयोद्धा.
लिखती रही हूँ सफ़रनामा निज प्रगति का, 
आरोहणार्थ समुद्यत दीर्घतर सोपान को, 
आज भी कुण्ठित परामुख हूँ सतत्,
पुरुषमानस से तिरोहित सुख विलासी
मात्र बन के जी रहा नारीजगत्,
वधूरूप में बेटी बनी अब माँ और सम्मान हूँ,  
ममतामयी सुखदायिनी निर्भया जीवन परी। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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