शृंगार या ग़ुलामी - कविता - प्रीति बौद्ध

ग़ुलामी की ज़ंजीरों को नारी का शृंगार बनाया।
सोलह शृंगार का नाम देकर नारी को मूर्ख बनाया।।

सोचो केवल शादी औरत की ही होती है।
जीवन भर क्यों केवल नारी ही सहती है।।

माथे पर वह बिंदिया, मांग में सिंदूर है।
इन सब से पुरुष वर्ग भला, कैसे दूर है।।

गले में काला मंगलसूत्र, हाथ में है चूड़ियाँ।
इन सब से पुरुषों ने, क्यों रखी हैं दूरियाँ।।

शादी के बाद, नारी को बदलना पड़ता है।
नारी का घर केवल ससुराल, यह समझना पड़ता है।।

चूड़ी, पायल, बिंदिया केवल नारी को पहनाया।
पुरुषों ने कुछ भी ना पहना यही समझ ना आया।।

उनकी भी तो होती हैं नारी की तरह ही शादियाँ।
क्यों नहीं बदलती उनकी सूरत की वादियाँ।।

वह तो शादी से पहले या बाद में एक जैसे दिखते हैं।
खुलकर अपने मित्रों से पहले की तरह ही मिलते हैं।।

उनको भी तो पत्नी के लिए धर्म निभाना चाहिए।
उन को भी तो सोलह शृंगार करना आना चाहिए।।

पुरुष कई शादी करके भी रहते वैसे के वैसे।
हम केवल एक शादी में हो जाते कैसे से कैसे।।

इसीलिए कहे प्रीति बहनों सब कुछ त्याग दो।
थोड़ा सा सस्पेंस पुरुषों पर छोड़ दो।।

उम्र के विश्वास को प्रकृति से जोड़ दो।
नारी अमानत है किसी की यह चिन्ह तोड़ दो।।

पुरुष भी अमानत है किसी की कभी नहीं दिखाते हैं।
शादीशुदा केवल महिला को ही दिखाते हैं।।

या तो अपने चिन्हों को छोड़ो या इनको भी चिन्हित कर दो।
अगर ऐसा ना कर पाओ तो अपनी ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ दो।।

अपनी इन ग़ुलामी की बेड़ियों को छोड़ दो।
सारे ही अंधविश्वास को प्रकृति से जोड़ दो।।

मेकअप के नाम पर व्यापारी बन रहा है।
मेकअप के नाम पर जनजन लुट रहा है।।

अपने इस पैसे को बच्चों की शिक्षा में लगाइए।
शिक्षा ही कॉस्टली मेकअप है यह भूल मत जाइए।।

शिक्षा ही प्यार है शिक्षा ही हमारा हथियार है।
शिक्षा के बल पर संविधान है संविधान ही हथियार है।।

हमारा बहुजन शिक्षित होगा तो ही तर्क-वितर्क कर पाएगा।
शिक्षा ही वह पूंजी है जो हमसे कोई नहीं छिन पाएगा।।

प्रीति बौद्ध - फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)

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