घट घट में श्री राम बसे हैं,
रोम रोम में राम है।
रामसेवा को आतुर रहना,
रामभक्तों का काम है।।
रामदुलारे अंजनी सुत,
पवन पुत्र हनुमान है।
सीना चीर दिखा सकते हैं,
राम-राम में ध्यान है।।
तिर जाते प्रस्तर सिंधु में,
राम नाम स्वर्णाक्षर से।
दुष्ट पापी धाम को जाते,
जप राम राम शब्दाक्षर से।।
असुरों का संहार करे प्रभु,
पतितों को पावन करते।
जहां कृपा राम की होती,
पतझड़ को सावन करते।।
आराध्य श्रीराम प्रभु जो,
जग के पालनहार है।
ध्यान लगा लो श्री राम,
सृष्टि के करतार है।।
राम नाम की जपते माला,
योगी संत महाज्ञानी।
राम नाम तारनहारा जो,
राम सा नही कोई सानी।।
रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)