बापू अब सपने मे आते - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

खुली आंखों से बाट निहारूँ,
बापू अब सपने में आते।
मन ही मन में रोज पुकारूं ,
बापू अब सपने में आते।
स्वप्न  देश के वासी बापू ,
रस्ता भूल गए हैं घर की।
वरना उनका मन ना लगता,
सूरत देखे बिन हम सबकी।
सपने में वैसे ही मिलते ,
जैसे  कहीं गए ना  हो।
सूरत वही, वही पहनावा ,
वही बोल वह नैना  हों।
जगने पर गायब हो जाते,
बापू अब सपने में आते।
खुली आंख से बाट निहारु ,
बापू अब सपने में आते।
स्वप्नदोष वह कैसा होगा ,
जिसमें जा बापू हैं जा भटके।
रोज चाहते होंगे आना ,
पर ना जाने क्यों है अटके।
स्वप्न देश की रस्ता पूछूं,
मुझको कौन बताएगा।
सूरत प्यारे  बापू की वो,
मुझको कौन दिखाएगा।
पहले देर कहीं जो होती,
मंदिर में परसाद मानते।
और बाद में बापू से ही ,
उसका पैसा तुरत मांगते।
अब कितना परसाद चढ़ाऊं,
क्या  बापू  आ जाएंगे।
जगती आंखों देख सकूंगी,
क्या बापू मिल जाएंगे।
खुली आंख से बाट निहारु,
बापू अब सपने में आते।
मन ही मन में रोज पुकारूं,
पर बापू सपने में आते।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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