पहले सी तस्वीर नहीं, बनती है चेहरे पर ।।
कुछ अन्जानी पीर भरी है, इस मन के भीतर,
बस अब उसकी याद नहीं, जगती है चेहरे पर ।।
कैसे पार किया घाटों को, जीवन नइया ने ,
सुख-दुःख ढोती एक नदी, बहती है चेहरे पर ।।
ख़ूब ख़ुशी हूँ सब कुछ बख्शा, है मेरे रब ने ,
फिर भी अक़्सर कोई कमी, रहती है चेहरे पर ।।
दरपन ने बतलाई हक़ीक़त, जब भी हम सब की,
तभी-तभी उलझी रेखा, खिंचती है चेहरे पर ।।
छोड़ गए तुम शहर हमारा, रुठ के यूँ हमसे ,
तबसें मन की हँसी नहीं, हँसती है चेहरे पर ।।
प्रदीप श्रीवास्तव - शिवपुरी (मध्यप्रदेश)