संदेश
पत्थर हूँ - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
पत्थर हूँ टूटकर जुड़ना मुनासिब न होगा, ख़ुद-परस्त दुनिया में साफ़गोई से कुछ हासिल न होगा। पत्थर हूँ... उनसे कह दो चालों के नश्तर न च…
पथ के पत्थर - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
कुछ उठाते कुछ गिराते कुछ चुभते कुछ सहलाते। कितनी तरह के होते हैं ये यात्रा पथ के पत्थर हमारे।। कुछ प्रेरणा देते हैं ऊँचा उठने की कुछ ड…
निराला जी की मज़दूरिन - कविता - रमाकान्त चौधरी
कितनी ही सड़कों पर बिछा उसका पसीना है, मगर क़िस्मत में उसकी आँसुओं के संग जीना है। किन-किन पथों पर उसने कितना पत्थर तोड़ा है, मेहनत से…
पत्थर में भगवान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ये महज़ विश्वास है कि पत्थर में भगवान है, परंतु यही विश्वास हमें बताता भी है भगवान कहाँ है? तभी तो हम मंदिर, मस्जिद गिरिजा, गुरुद्वारों…
पत्थरों का ढ़ेर - कविता - पारो शैवलिनी
मेरी आत्मा! धिक्कारती है मुझे। कहती है, क्यों सींचता है तू इस जमीन को। इससे तुझे कुछ नहीं मिलेगा। क्योंकि, यहाँ मात्र पत्थरों का ढ़ेर …
फूल से पत्थर का संवाद - कविता - ममता शर्मा "अंचल"
इक दिन फूलों से पत्थर की बात हुई बात कहूँ या तानों की बरसात हुई तू है बहुत कठोर, कहा जब फूलों ने साथ दिया फूलों का तीखे शूलों …
फूलों की डगर में पत्थर बरसते हैं - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
पत्थरों के शहर में पत्थर बरसते हैं। फूलों की डगर में सुगंधी महकते हैं। जिंदगी के सफर में हमराही मिलते हैं। उनसे ही डगर में पत्थ…