पत्थर हूँ टूटकर जुड़ना
मुनासिब न होगा,
ख़ुद-परस्त दुनिया में
साफ़गोई से
कुछ हासिल न होगा।
पत्थर हूँ...
उनसे कह दो चालों के
नश्तर न चलाएँ,
लकीरों के सिवा उन्हें
कुछ हासिल न होगा।
पत्थर हूँ...
जिन हाथों ने मुझे
संभाला था बार-बार,
सबने समझा कि वह
मेरा क़ातिल न होगा।
पत्थर हूँ...
उम्रभर सफ़र-ए-इश्क़ में
बस चलना ही है 'बाबू',
इस दरिया का कभी
कोई साहिल न होगा।
पत्थर हूँ...
जयप्रकाश 'जय बाबू' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)