संदेश
रोटी, कपड़ा और मकान - कविता - रीमा सिन्हा
मख़मली पर्दों के पीछे भी एक और जहान है, रो रहे हैं सब वहाँ, न रोटी कपड़ा और मकान है। रूधिर जिनके सूख गये, पीते हलाहल हर रोज़ हैं, शर क्या…
ग़रीबी और लाचारी - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
हाय ये कैसी, ग़रीबी व लाचारी। बना रही उसके जीवन को दुधारी।। क्या अजब, होती है ये ग़रीबी। न बढ़ाता कोई रिश्ता क़रीबी।। ग़रीबी की नही कोई…
मज़दूर है मजबूर - कविता - गणपत लाल उदय
मैं हूँ एक ग़रीब मज़दूर हालत ने कर दिया मजबूर। गाँव छोड़ शहर में आया पेट परिवार का भर नहीं पाया।। दिन भर में इतना ही कमाता शाम को ख…
ग़रीब किसान - कविता - गणपत लाल उदय
हम गाँवो के ग़रीब किसान करते - रहते खेतों पर काम। फिर भी मिलता न पूरा दाम लगे रहते हम सुबह से शाम।। पत्नी बच्चे और ये घर वाले काम स…
भूख मरने का इन्तज़ार करते हैं - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
तुम इन्तजार भूख लगने का करते हो और वो भूख मरने का इन्तज़ार करते हैं गरीबी इक गुनाह है, वो ऐतबार करते हैं भूखी माँ दूध पिलाती बन हड्डी क…
मैं दीन - हीन लघु दीप एक - गीत - डॉ. अवधेश कुमार अवध
मैं दीन - हीन लघु दीप एक, थोड़ा - सा स्नेह प्रदान करो। रख दो गरीब की कुटिया में, उनकी रजनी भी जाग उठे। आँगन में कुछ खुशहाली हो, उनके …
खाली पेट की तस्वीरें - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
एक रोग है कंगाली भूख में दर्द बडा़ है हर आग बुझे पानी से पर पेट का आग बुरा है, भूख सात दिन बासी रोटी बस दो दिन पहले की कौन है ज्यादा…