संदेश
वक़्त ठहरा कब है - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
वक़्त ठहरा कब है बता मानव, जीवन मूक खड़ा रह जाता है। अबाधित दुरूह विघ्न से ऊपर, वायुगति कालचक्र बढ़ जाता है। शाश्वत प्रमाण काल ब्रह्…
नज़रिया - कविता - संजय राजभर 'समित'
जीवन सरल कैसे हो एक पैमाना लिए सारी उम्र मुद्राएँ बटोरता रहा। हर एक क़दम के बाद वही समस्याएँ पर तन-मन में ताक़त थी लड़ता रहा, उम्र बढ़ा …
समय - कविता - सचिन कुमार सिंह
शासक पर भी शासन करता, सबको नाच नचाता है, समय बड़ा ही मूल्यवान है, लौट नहीं यह आता है। स्थिरता के अभाव में, निरंतरता के स्वभाव से, बढ़त…
समय - कविता - रेखा टिटोरिया
मत ओढ़ उदासियों को कर ख़त्म सिसकियों को। जो हो गया हो जाने दे चल उठ आगे बढ़ ज़िंदगी को जी ले। ये समय है पगले क्यों फ़िक्र करता है ये आज…
वक़्त - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
यह वक़्त ही तो है जो हम सभी को सबक़ सिखाता है, बग़ैर इसके सिखाए इंसान समझ ही कहाँ पाता है। क्योंकि रहते हुए इसकी क़ीमत कहाँ समझ पाता है, औ…
कैसी है पहचान तुम्हारी - कविता - राघवेंद्र सिंह
कैसी है पहचान तुम्हारी कहाँ तुम्हारा बना निलय? मुझे बताओ अश्व समय के करना है मुझे तुम्हें विजय। दाँव लगाने सामर्थ्य की तुम चार पाँव से…
न समय कम न काम ज़्यादा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
समय का रोना नहीं रो रहा हूँ, बस ईमानदारी से बयाँ करता हूँ, जीने की फ़िक्र नहीं है मुझे ज़िंदा रहने के रास्ते तलाशता हूँ। जाने क्यूँ लगता…