समय - कविता - रेखा टिटोरिया

मत ओढ़ उदासियों को
कर ख़त्म सिसकियों को।
जो हो गया हो जाने दे
चल उठ आगे बढ़
ज़िंदगी को जी ले।
ये समय है पगले
क्यों फ़िक्र करता है 
ये आज तक न किसी का हुआ
तू क्यों अफ़सोस करता है
जो कल था वो आज ना है
जो आज है वो कल ना होगा
विधि का विधान है
ये ना कभी रुकता है 
मत ओढ़ उदासियों को
कर ख़त्म सिसकियों को।
व्यर्थ की चिंता ना कर
वो बेला भी आएगी
जिस के लिए तू रोया है
जिसने तुझ को खोया है
वो भी तुझ को याद करेगा
वो भी तेरे लिए रोएगा
उसने जो ग़लत किया है
उस पर वो भी पछताएगा।
मत ओढ़ उदासियों को
कर खत्म सिसकियों को।
देख ज़रा वो कौन खड़ा है
तेरी बाट जोह रहा है
तेरी राहों में फिर से
उम्मीदों के फूल खिलाएगा
ये समय है सब कुछ लौटा कर जाएगा
मत ओढ़ उदासियों को
ख़त्म कर अब सिसकियों को।

रेखा टिटोरिया - हरिद्वार (उतराखंड)

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