न समय कम न काम ज़्यादा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
शुक्रवार, जनवरी 28, 2022
समय का रोना नहीं रो रहा हूँ,
बस ईमानदारी से बयाँ करता हूँ,
जीने की फ़िक्र नहीं है मुझे
ज़िंदा रहने के रास्ते तलाशता हूँ।
जाने क्यूँ लगता है मुझे आजकल
संकेत मिल रहा है बार बार हर पल
समय कम है काम बहुत ज़्यादा
डरता नहीं बस डगमगा रहा हूँ।
समय का क्या वो तो जन्म से ही
कम ही कम हर पल होता रहा है,
मैं नहीं डरता कल मरूँ या आज
मेरी ख़्वाहिश मुझे बस आज मरना है।
चाहकर भी मेरे समय नहीं रुकेगा
मौत तो अपने समय पर ही आएगी
समय कितना भी मिल जाएगा
फिर भी काम न पूरा हो पाएगा।
बस कोशिश यही करना मुझको
जो कर सकता हूँ करते ही रहना है,
जीने मरने की फ़िक्र नहीं मुझको
बस मरकर भी ज़िंदा ही रहना है।
समय कम ज़्यादा में न उलझना मुझे
बस अपने कर्म करते जाना है मुझे
काम पूरा होगा या शेष रह जाएगा
यह सोचकर नहीं रुकना है मुझे।
न समय कम है न ही काम ज़्यादा
समय जो हमारा वो हमारा रहेगा
बस इतने ही समय में मेरे दोस्तों
इतिहास बनना और बनाना है मुझे।
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