वक़्त - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'

यह वक़्त ही तो है जो हम सभी को सबक़ सिखाता है,
बग़ैर इसके सिखाए इंसान समझ ही कहाँ पाता है।
क्योंकि रहते हुए इसकी क़ीमत कहाँ समझ पाता है,
और जब हाथ से निकल जाए तब वह पछताता है।

यही तो है जो हमें जीने का सलीक़ा सिखाता है,
इंसान को उसकी असलियत का आईना दिखाता है।
कहने को तो वह पंख लगा कर उड़ता फिरता है,
पर अफ़सोस चाह कर भी समय को नहीं पकड़ पाता है।

यह तो हवा का झोंका है जो अपनी ही चाल से चलता है,
और क़दम-क़दम पर इसी की बदौलत इंसान बदलता है।
यही तो है जो अपने और परायों की पहचान करवाता है,
इस पर जोर किसी का नहीं ये तो साँसों में गुज़र जाता है।

इंसान रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पाता है, लेकिन
जब ये अपनी पर आए तो हाथ से रिश्ता निकल जाता है।
इन्सान ख़ुश होता है वह इन्सान दूसरों को दुख जो देता है,
लेकिन करनी का फल स्वयं भी एक दिन ज़रूर पाता है।

पूर्व जन्म के कर्म फलों से आज का ये नाता है किन्तु ख़त्म
होते ही, आज वालों का खुल जाता फिर खाता है।
बदलती हुई तक़दीरो के साथ वक़्त बदल जाता है फिर,
लम्बा दिखाई देना वाला रास्ता भी छोटा नज़र आता है।

माना कि खाए गए ज़ख्म आसानी से नहीं भरा करते,
पर इस ढलते वक़्त के साथ-साथ वह भी सूख जाता है।
वक़्त अगर सही हो तो हर कोई आपका अपना है, मगर 
पलट जाए तो हर भरोसेमंद, आपको धोखा दे जाता है।

मेरी लेखनी का हर शब्द सभी से यही कहता जाता है,
सब जानकर भी इन्सान क्यों ख़ुद से ही नज़रें चुराता है।
न छोड़ो और न तोड़ो उन्हें जिनसे तुम्हारा गहरा नाता है,
वरना दोस्तों‌ गुज़रा वक़्त किसी का भी वापस नहीं आता है।

सीमा शर्मा 'तमन्ना' - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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